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________________ सोलहवाँ अध्ययन : ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान २४३ आकृति, ऊँचाई आदि की चर्चा, नेपथ्य-स्त्रियों के विभिन्न वेश, पोशाक, पहनावे आदि की चर्चा । इसका परिणाम पूर्ववत् है। तृतीय ब्रह्मचर्य-समाधिस्थान ५. नो इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेजागए विहरित्ता हवइ से निग्गन्थे। तं कहमिति चे? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागयस्स, बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेजा। तम्हा खलु नो निग्गन्थे इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेजागए विहरेजा। [५] जो स्त्रियों के साथ एक आसन पर नहीं बैठता, वह निर्ग्रन्थ है। [प्र.] ऐसा क्यों? [उ.] आचार्य कहते हैं—जो ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ स्त्रियों के साथ एक आसन पर बैठता है, उस को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है अथवा ब्रह्मचर्य का विनाश हो जाता है अथवा उन्माद पैदा हो जाता है या दीर्घकालिक रोग और आतंक हो जाता है; अथवा वह केवलिप्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। अतः निर्ग्रन्थ स्त्रियों के साथ एक आसन पर न बैठे। विवेचन—इत्थीहिं सद्धिं सन्निसिजागए : व्याख्या—इसकी व्याख्या बृहद्वृत्ति में दो प्रकार से की गई है—(१) स्त्रियों के साथ सन्निषद्या—पट्टा, चौकी, शय्या, बिछौना, आसन आदि पर न बैठे, (२) स्त्री जिस स्थान पर बैठी हो उस स्थान पर तुरंत न बैठे, उठने पर भी एक मुहूर्त (दो घड़ी) तक उस स्थान या आसनादि पर न बैठे। चतुर्थ ब्रह्मचर्य-समाधिस्थान ६. नो इत्थीणं इन्दियाइं मणोहराई, मणोरमाइं आलोइत्ता, निज्झाइत्ता हवइ, से निग्गन्थे। ते कहमिति चे? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं इन्दियाई मणोहराई, मणोरमाइं आलोएमाणस्स, निज्झायमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिजा, भेयं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ आ.धम्माओ भंसेजा। तम्हा खलु निग्गन्थे नो इत्थीणं इन्दियाइं मणोहराई, मणोरमाइं आलोएज्जा, निज्झाएजा। [६] जो स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों को (ताक-ताक कर) नहीं देखता, उनके विषय में चिन्तन नहीं करता, वह निर्ग्रन्थ श्रमण है। [प्र.] ऐसा क्यों? [उ.] इस पर आचार्य कहते हैं—जो निर्ग्रन्थ ब्रह्मचारी स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों को १. (क) बृहवृत्ति, पत्र ४२४ (ख) मिलाइए—दशवै० ८/५२, स्थानांग ९/६६३, समवायांग, ९ २. बृहद्वृत्ति, पत्र ४२४
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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