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सोलहवाँ अध्ययन
- ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान * प्रस्तुत अध्ययन में ब्रह्मचर्य-सुरक्षा के लिए बताए गए समाधिस्थान क्रमशः इस प्रकार हैं
(१) स्त्री-पशु-नपुंसक से विविक्त (अनाकीर्ण) शयन और आसन का सेवन करे, (२) स्त्रीकथा न करे, (३) स्त्रियों के साथ एक आसन पर न बैठे, (४) स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों को दृष्टि गड़ा कर न देखे, न चिन्तन करे, (५) दीवार आदि की ओट में स्त्रियों के कामविकारजनक शब्द न सुने, (६) पूर्वावस्था में की हुई रति एवं क्रीड़ा का स्मरण न करे, (७) प्रणीत (सरस स्वादिष्ट पौष्टिक) आहार न करे, (८) मात्रा से अधिक आहार-पानी का सेवन न करे, (९)
शरीर की विभूषा न करे और (१०) पंचेन्द्रिय विषयों में आसक्त न हो। * स्थानांग और समवायांग में ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियों का उल्लेख है। उत्तराध्ययन में जो दसवाँ
समाधिस्थान है, वह यहाँ आठवीं गुप्ति है। केवल पांचवाँ समाधिस्थान, स्थानांग एवं समवायांग में नहीं है। उत्तराध्ययन के ९वें स्थान-विभूषात्याग के बदले उनमें नौवीं गप्ति है -साता और
सुख में प्रतिबद्ध न हो। * मूलाचार में शीलविराधना (अब्रह्मचर्य) के दस कारण ये बतलाए हैं—(१) स्त्रीसंसर्ग, (२) प्रणीतरस भोजन, (३) गन्धमाल्यसंस्पर्श, (४) श
सस्पर्श, (४) शयनासनगृद्धि, (५) भूषणमण्डन, (६) गीतवाद्यादि की अभिलाषा. (७) अर्थसम्प्रयोजन. (८) कशीलसंसर्ग. (९) राजसेवा (विषयों की सम्पर्ति के लिए राजा की अतिशय प्रशंसा करना) और (१०) रात्रिसंचरण। * अनगारधर्मामृत में १० नियमों में से तीन नियम भिन्न हैं। जैसे—(२) लिंगविकारजनक कार्यनिषेध,
(६) स्त्रीसत्कारवर्जन, (१०) इष्ट रूपादि विषयों में मन को न जोड़े।
स्मतियों में ब्रह्मचर्यरक्षा के लिए स्मरण. कीर्तन क्रीडा. प्रेक्षण. गाभाषण. संकल्प. अध्यवसाय ___ और क्रियानिष्पत्ति, इन अष्ट मैथुनांगों से दूर रहने का विधान है। २
प्रस्तत दस समाधिस्थानों में स्पर्शनेन्द्रियसंयम के लिए सह-शयनासन तथा एकासननिषद्या का. रसनेन्द्रियसंयम के लिए अतिमात्रा में आहार एवं प्रणीत आहार सेवन का, चक्षरिन्द्रियसंयम के लिए स्त्रीदेह एवं उसके हावभावों के निरीक्षण का, मन:संयम के लिए कामकथा, विभूषा एवं पूर्वक्रीड़ित स्मरण का, श्रोत्रेन्द्रियसंयम के लिए स्त्रियों के विकारजनक शब्द श्रवण का एवं
सर्वेन्द्रियसंयम के लिए पंचेन्द्रियविषयों में आसक्ति का त्याग बताया है। * साथ ही इन इन्द्रियों एवं मन पर संयम न रखने के भयंकर परिणाम भी प्रत्येक समाधिस्थान के
साथ-साथ बताये गए हैं। अन्त में पद्यों में उक्त दस स्थानों का विशद निरूपण भी कर दिया गया
है तथा ब्रह्मचर्य की महिमा भी प्रतिपादित की है। * पूर्वोक्त अनेक परम्पराओं के सन्दर्भ में ब्रह्मचर्य के इन दस समाधिस्थानों का महत्त्वपूर्ण वर्णन इस
अध्ययन में है।
१. उत्तरा. मूल, अ. १६, सू. १ से १२, गा. १ से १३ तक २. (क) स्थानांग. ९ / ६६३
(ख) समवायांग, सम. ९ (ग) मूलाचार ११ / १३-१४ (घ) अनगारधर्मामृत ४/६१ (ङ) दक्षस्मृति ७/३१-३३ ३. उत्तराध्ययन मूल, अ० १६,गाथा १ से १३ तक