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________________ २०२ उत्तराध्ययनसूत्र कंपिल्ले संभूओ—पूर्वजन्म में जो सम्भूत नामक मुनि था, वह निदान के प्रभाव से पाञ्चाल मण्डल के काम्पिल्यनगर में ब्रह्मराज और चूलनी के सम्बन्ध में ब्रह्मदत्त के रूप में हुआ। सम्पूर्ण कथा अध्ययनसार में दी गई है। सेट्टिकुलम्मि पंक्ति का भावार्थ—प्रचुर धन और बहुत बड़े परिवार से सम्पन्न होने से विशाल धनसार श्रेष्ठी के कुल में गुणसार नामक पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ और जैनाचार्य शुभचन्द्र से श्रुत-चारित्ररूप धर्म का उपदेश सुनकर मुनिधर्म की दीक्षा ग्रहण की।२ ।। चित्र और सम्भूत का काम्पिल्यनगर में समागम और पूर्वभवों का स्मरण ३. कम्पिल्लम्मि ये नयरे समागया दो वि चित्तसम्भूया। सुहदुक्खफलविवागं कहेन्ति ते एक्कमेक्कस्स॥ [३] काम्पिल्यनगर में चित्र और सम्भूत दोनों का समागम हुआ। वहाँ उन दोनों ने परस्पर (एक-दूसरे को ) सुख-दुःख रूप कर्मफल के विपाक के सम्बन्ध में वार्तालाप किया। ४. चक्कवट्टी महिड्ढीओ बम्भदत्तो महायसो। भायरं बहुमाणेणं इमं वयणमब्बवी-॥ __ [४] महान् ऋद्धिसम्पन्न एवं महायशस्वी चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त ने अपने (पूर्वजन्म के) भाई से इस प्रकार वचन कहे ५. आसिमो भायरा दो वि अन्नमन्नवसाणुगा। अन्नमन्त्रमणूरत्ता अन्नमन्नहिएसिणो॥ [५] (ब्रह्मदत्त)-(इस जन्म से पूर्व) हम दोनों भाई थे; एक दूसरे के वशवर्ती, परस्पर अनुरक्त (एक दूसरे के प्रति प्रीति वाले) एवं परस्पर हितैषी थे। ६. दासा दसपणे आसी मिया कालिंजरे नगे। हंसा मयंगतीरे य सोवागा कासिभूमिए॥ ७. देवा य देवलोगम्मि आसि अम्हे महिड्ढिया। इमा नो छट्ठिया जाई अन्नमन्त्रेण जा विणा॥ [६-७] हम दोनों दशार्ण देश में दास, कालिंजर गिरि पर मृग, मृतगंगा के तट पर हंस और काशी देश में चाण्डाल थे। फिर हम दोनों सौधर्म ( नामक प्रथम) देवलोक में महान् ऋद्धि वाले देव थे। यह हम दोनों का छठा जन्म है, जिसमें हम एक दूसरे से पृथक्-पृथक् (वियुक्त) हो गए। विवेचन—चित्र और सम्भूत का समागम-प्रस्तुत गाथा में चित्र और सम्भूत पूर्वजन्म के नाम हैं। इस जन्म में उनका समागम क्रमशः श्रेष्ठिपुत्र गुणसार (मुनि) के रूप में तथा ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती के रूप १. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ३७७ (ख) उत्तरा० प्रियदर्शिनीटीका, भा॰ २, पृ०७४२ २. उत्तराध्ययन प्रियदर्शिनीटीका , भा० २ पृ०७४३
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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