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________________ 'तेरहवां अध्ययन' चित्र - सम्भूतीय अध्ययन - सार * इस अध्ययन का नाम चित्र-सम्भूतीय' है। इसमें चित्र और सम्भूत, इन दोनों के पांच जन्मों तक लगातार भ्रातृ-सम्बन्ध का और छठे जन्म में पूर्वजन्मकृत संयम की आराधना एवं विराधना के फलस्वरूप पृथक्-पृथक् स्थान, कुल, वातावरण आदि प्राप्त होने के कारण हुए एक दूसरे से विसम्बन्ध (वियोग) का संवाद द्वारा निरूपण है। * चित्र और सम्भूत कौन थे? इनके लगातार पांच जन्म कौन-कौन से थे? इन जन्मों में कहाँ-कहाँ उन्नति-अवनति हुई? छठे जन्म में दोनों क्यों और कैसे पृथक्-पृथक् हुए? कैसे इनका परस्पर समागम हुआ? इन सबके सम्बन्ध में जिज्ञासा होना स्वाभाविक है। यहाँ दोनों के छठे भाव में समागम होने तक की खास-खास घटनाओं का उल्लेख किया जाता है * साकेत के राजा चन्द्रावतंसक के पुत्र मुनिचन्द्र राजा को सांसारिक कामभोगों से विरक्ति हो गई। उसने सागरचन्द्र मुनि से भागवती दीक्षा अंगीकार की। एक बार वे विहार करते हुए एक भयानक अटवी में भटक गए। वे भूख-प्यास से व्याकुल हो रहे थे। इतने में ही वहाँ उन्हें चार गोपालकपुत्र मिले। उन्होंने इनकी यह दुरवस्था देखी तो करुणा से प्रेरित होकर परिचर्या की । मुनि ने चारों गोपाल- पुत्रों को धर्मोपदेश दिया। उसे सुन कर चारों बालक प्रतिबुद्ध होकर उनके पास दीक्षित हो गए। दीक्षित होने पर भी उनमें से दो साधुओं के मन में साधुओं के मलिन वस्त्रों से घृणा बनी रही। इसी जुगुप्सावृत्ति के संस्कार लेकर वे मर कर देवगति में गए। वहाँ से आयुष्यपूर्ण करके जुगुप्सावृत्ति वाले वे दोनों दशार्णनगर (दशपुर) में शांडिल्य ब्राह्मण की दासी यशोमती की कुक्षि युगलरूप से जन्मे । एक बार दोनों भाई रात को अपने खेत में एक वृक्ष के नीचे सो रहे थे कि अकस्मात् एक सर्प निकला और एक भाई को डँस कर चला गया। दूसरा जागा। मालूम होते ही वह सर्प को ढूंढने निकला, किन्तु उसी सर्प ने उसे भी डस लिया। दोनों भाई मर कर कालिंजर पर्वत पर एक हिरनी के उदर में युगलरूप से उत्पन्न हुए। एक बार वे दोनों चर रहे थे कि एक शिकारी ने एक ही बाण से दोनों को मार डाला। मर कर वे दोनों मृतगंगा के किनारे राजहंस बने। एक दिन वे साथ-साथ घूम रहे थे कि एक मछुए ने दोनों को पकड़ा और उनकी गर्दन मरोड़ कर मार डाला। दोनों हंस मर कर वाराणसी के अतिसमृद्ध एवं चाण्डालों के अधिपति भूतदत्त के यहाँ पुत्ररूप में जन्मे। उनका नाम 'चित्र' और 'सम्भूत' रखा गया। दोनों भाइयों में अपार स्नेह था । * वाराणसी के तत्कालीन राजा शंख का नमुचि नामक एक मन्त्री था। राजा ने उसके किसी भयंकर अपराध पर क्रुद्ध होकर उसके वध की आज्ञा दी। वध करने का कार्य चाण्डाल भूतदत्त को सौंपा
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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