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________________ ग्यारहवाँ अध्ययन : बहुश्रुतपूजा १६५ ४. अह अट्ठहिं ठाणेहिं सिक्खासीले त्ति वुच्चई। अहस्सिरे सया दन्ते न य मम्ममुदाहरे॥ ५. नासिले न विसीले न सिया अइलोलुए। ___अकोहणे सच्चरए सिक्खासीले त्ति वुच्चई॥ [४-५] इन आठ स्थानों (कारणों) से शिक्षाशील कहलाता है-जो सदा हंसी-मजाक न करे, (२) जो दान्त (इन्द्रियों और मन का दमन करने वाला) हो, (३) जो दूसरों का मर्मोद्घाटन नहीं करे, (४) जो अशील (- सर्वथा चारित्रहीन) न हो, (५) जो विशील (-दोषों-अतिचारों से कलंकित व्रतचारित्र वाला) न हो, (६) जो अत्यन्त रसलोलुप न हो, (७) (क्रोध के कारण उपस्थित होने पर भी) जो क्रोध न करता हो, (क्षमाशील हो) और (८) जो सत्य में अनुरक्त हो, उसे शिक्षाशील (बहुश्रुतता की उपलब्धि वालां) कहा जाता है। विवेचन - शिक्षा के प्रकार - ग्रहणशिक्षा और आसेवनशिक्षा। शास्त्रीयज्ञान गुरु से प्राप्त करने को ग्रहणशिक्षा और गुरु के सान्निध्य में रहकर तदनुसार आचरण एवं अभ्यास करने को आसवेनशिक्षा कहते हैं। अभिमान आदि कारणों से ग्रहणशिक्षा भी प्राप्त नहीं होती तो आसेवन शिक्षा कहाँ से प्राप्त होगी? जो शिक्षाशील होता है, वह बहुश्रुत होता है। स्तम्भ का भावार्थ-अभिमान है। साब्ध-अभिमानी को कोई शास्त्र नहीं पढ़ाता, क्योंकि वह विनय नहीं करता। अतः अभिमान शिक्षाप्राप्ति में बाधक है। पमाएणं- प्रमाद के मुख्य ५ भेद हैं-मद्य (मद्यजनित या मद्य), विषय, कषाय, निद्रा और विकथा। यों तो आलस्य भी प्रमाद के अन्तर्गत है, किन्तु यहाँ आलस्य–लापरवाही, उपेक्षा या उत्साहहीनता के अर्थ में है। अबहश्रत होने के पांच कारण- प्रस्तत पांच कारणों से मनष्य शिक्षा के योग्य नहीं होता। शिक्षा के अभाव में ऐसा व्यक्ति अबह श्रत होता है। सिक्खासीले-शिक्षाशील : दो अर्थ -(१) शिक्षा में जिसकी रुचि हो, अथवा (२) जो शिक्षा का अभ्यास करता हो। अहस्सिरे-अहसिता-अकारण या कारण उपस्थित होने पर, भी जिसका स्वभाव हंसी मजाक करने का न हो। सच्चरए-सत्यरत : दो अर्थ-(१) सत्य में रत हो या (२) संयम में रत हो। अकोहणे- अक्रोधन - जो निरपराध या अपराधी पर भी क्रोध न करता हो। अविनीत और विनीत का लक्षण ६. अह चउदसहिं ठाणेहिं वट्टमाणे उ संजए। अविणीए वुच्चई सो उनिव्वाणं च न गच्छइ॥ १. बृहद्वत्ति, पत्र ३४५ २. वही, पत्र ३४५ ३. (क) उत्तरा० चूर्णि, पृ० १९६ (ख) बृहवृत्ति, पत्र ३३६
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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