________________
- समीक्षात्मक अध्ययन/२५ संवाद समुत्थित है।३७
उत्तराध्ययन के मूलपाठ पर ध्यान देने से उसके कर्तृत्व के सम्बन्ध में अभिनव चिन्तन किया जा सकता
द्वितीय अध्ययन के प्रारम्भ में यह वाक्य आया है-"सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं- इह खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया।"
सोलहवें अध्ययन के प्रारम्भ में यह वाक्य उपलब्ध है-"सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खामइह खलु थेरे हिं भगवंतेहि दस बंभचेरसमाहि ठाणा पण्णत्ता।"
उनतीसवें अध्ययन के प्रारम्भ में यह वाक्य उपलब्ध है-"सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायंइह खलु सम्मत्तपरिक्कमे नामऽज्झयणे समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइए।"
उपर्युक्त वाक्यों से यह स्पष्ट परिज्ञात होता है कि दूसरा, उनतीसवाँ अध्ययन श्रमण भगवान् महावीर के द्वारा प्ररूपित है और सोलहवाँ अध्यययन स्थविरों के द्वारा रचित है। नियुक्तिकार ने द्वितीय अध्ययन को कर्मप्रवादपूर्व से निरूढ माना है।
जब हम गहराई से इस विषय में चिन्तन करते हैं तो सूर्य के प्रकाश की भाँति स्पष्ट होता है कि नियुक्तिकार ने उत्तराध्ययन को कर्तृव्य की दृष्टि से चार भागों में विभक्त कर उस पर प्रकाश डालना चाहा, पर उससे उसके कर्तृत्व पर प्रकाश नहीं पड़ता, किन्तु विषयवस्तु पर प्रकाश पड़ता है। दसवें अध्ययन में जो विषयवस्तु है, वह भगवान् महावीर द्वारा प्ररूपित है, किन्तु उनके द्वारा रचित नहीं। क्योंकि प्रस्तुत अध्ययन की
अन्तिम गाथा "बुद्धस्स निसम्म भासियं" ये बात स्पष्ट होती है। इसी प्रकार दूसरे व उनतीसवें अध्ययन के प्रारम्भिक वाक्यों से भी यह तथ्य उजागर होता है।
छठे अध्ययन की अन्तिम गाथा है-अनत्तरज्ञानी. अनुत्तरदर्शी. अनत्तर ज्ञान-दर्शन के धारक, अरिहन्त, ज्ञातपुत्र, भगवान्, वैशालिक महावीर ने ऐसा कहा है।३८ वैशालिक का अर्थ भगवान् महावीर है।
प्रत्येकबुद्धभाषित अध्ययन भी प्रत्येकबुद्ध द्वारा ही रचे गये हों, यह बात नहीं है। क्योंकि आठवें अध्ययन की अन्तिम गाथा में यह बताया है कि विशुद्ध प्रज्ञावाले कपिल मुनि ने इस प्रकार धर्म कहा है। जो इसकी सम्यक् आराधना करेंगे, वे संसार-समुद्र को पार करेंगे। उनके द्वारा ही दोनों लोक आराधित होंगे।३९ यदि प्रस्तुत अध्ययन कपिल के द्वारा विरचित होता तो वे इस प्रकार कैसे कहते?
संवाद-समुत्थित-अध्ययन नौवें और तेईसवें अध्ययनों का अवलोकन करने पर यह परिज्ञात होता है कि वे अध्ययन नमि राजर्षि और केशी-गौतम द्वारा विरचित नहीं हैं। नौवें अध्ययन की अन्तिम गाथा है-संबुद्ध, पण्डित, प्रविचक्षण पुरुष कामभोगों से उसी प्रकार निवृत्त होते हैं जैसे—नमि राजर्षि!४० तेईसवें अध्ययन की
३७. संवाओ जहा णमिपव्वष्णा केसिगोयमेजं च। -उत्तराध्ययनचूर्णि, पृष्ठ ७ –उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति, पत्र ५ ३८. एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी, अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाणदंसणधरे।
अरहा नायपुत्ते, भगवं वेसालिए वियाहिए।। -उत्तराध्ययन ६/१८ ३९. इइ एस धम्मे अक्खाए, कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं।
तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति तेहिं आराहिया दुवे लोगा ।। - उत्तराध्ययन ८/२० ४०. एवं करेन्ति संबुद्धा पंडिया पवियक्खणा।
विणियट्टन्ति भोगेसु, जहा से नमी रायरिसी॥ - उत्तराध्ययन ९/६२