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उत्तराध्ययनसूत्र
द्रमपत्रक गौतम ने उनसे क्षमायाचना की परन्तु उनका मन अधीरता और शंका से भर गया कि मेरे बहुत-से शिष्य केवलज्ञानी हो चुके हैं, परन्तु मुझे अभी तक केवलज्ञान नहीं हुआ! क्या मैं सिद्ध नहीं होऊँगा?? इसी प्रकार एक बार गौतमस्वामी अष्टापद पर गए थे। वहाँ कौडिन्य, दत्त और शैवाल नामक तीन तापस अपने पांच-पांच सौ शिष्यों के साथ क्लिष्ट तप कर रहे थे। इनमें से कौडिन्य उपवास के
नन्तर पारणा करके फिर उपवास करता था। पारणा में मूल, कन्द आदि का आहार करता था। वह अष्टापद पर्वत पर चढ़ा, किन्तु एक मेखला से आगे न जा सका। दत्त बेले-बेले का तप करता था
और पारणा में नीचे पड़े हुए पीले पत्ते खा कर रहता था। वह अष्टापद की दूसरी मेखला तक ही चढ़ पाया। शैवाल तेले-तेले का तप करता था, पारणे में सूखी शैवाल (सेवार) खाता था। वह अष्टापद की तीसरी मेखला तक ही चढ़ पाया। गौतमस्वामी वहाँ आए तो उन्हें देख तापस परस्पर कहने लगे – हम महातपस्वी भी ऊपर नहीं जा सके तो यह स्थूल शरीर वाला साधु कैसे जाएगा? परन्तु उनके देखते ही देखते गौतमस्वामी जघाचारणलब्धि से सूर्य की किरणों का अवलम्बन लेकर शीघ्र ही चढ़ गए और क्षणभर में अन्तिम मेखला तक पहुंच गए। आश्चर्यचकित तापसों से निश्चय कर लिया कि ज्यों यह मुनि नीचे उतरेंगे, हम उनके शिष्य बन जाएंगे। प्रात:काल जब गौतमस्वामी पर्वत से नीचे उतरे तो तापसों ने उनका रास्ता रोक कर कहा - 'पूज्यवर! आप हमारे गुरु हैं, हम सब आपके शिष्य हैं।' तब गौतम बोले - 'तुम्हारे और हमारे सब के गुरु तीर्थंकर महावीर हैं।' यह सुन कर वे आश्चर्य से बोले - 'क्या आपके भी गुरु हैं?' गौतमस्वामी ने कहा – 'हाँ, सुरासुरों एवं मानवों द्वारा पूज्य, रागद्वेषरहित सर्वज्ञ प्रभु महावीर स्वामी जगद्गुरु हैं, वे मेरे भी गुरु हैं। सभी तापस यह सुन कर हर्षित हुए। सभी तापसों को प्रव्रजित कर गौतम भगवान् की ओर चल पड़े। मार्ग में गौतमस्वामी ने अक्षीणमहानलब्धि के प्रभावों से सभी साधकों को 'खीर' का भोजन कराया। शैवाल आदि ५०१ साधुओं ने सोचा – 'हमारे महाभाग्य से सर्वलब्धिनिधान महागुरु मिले हैं।' यों शुभ अध्ययवसायपूर्वक शुक्लध्यानश्रेणी पर आरूढ ५०१ साधुओं को केवलज्ञान प्राप्त हो गया। जब सभी साधु समवसरण के निकट पहुंचे तो बेले-बेले तप करने वाले दत्तादि ५०१ साधुओं को केवलज्ञान प्राप्त हो गया। फिर उपवास करने वाले कौडिन्य आदि ५०१ साधुओं को शुक्लध्यान के निमित्त से तीर्थंकर महावीर के दर्शन होते ही केवलज्ञान प्राप्त हो गया। तीर्थंकर भगवान् की प्रदक्षिणा करके ज्यों ही वे केवलियों की परिषद् की ओर जाने लगे, गौतम ने उन्हें रोकते हुए भगवान् को वन्दना करने का कहा, तब भगवान् ने कहा - 'गौतम! केवलियों की आशातना मत करो। ये केवली हो चुके हैं।' यह सुन कर गौतमस्वामी ने मिथ्यादुष्कृतपूर्वक उन सबसे क्षमायाचना करके विचार किया – मैं गुरुकर्मा इस भव में मोक्ष प्राप्त करूँगा या नहीं? भगवान् गौतम के अधैर्ययुक्त मन
को जान गए। उन्होंने गौतम से पूछा – 'गौतम! देवों का वचन प्रमाण है या तीर्थंकर का?' गौतम - 'भगवन्! तीर्थंकर का वचन प्रमाण है।'
१. (क) उत्तरा. (गुजराती अनुवाद), पत्र ३९६-३९७
(ख) उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका, भा. २, पृ. ४६३ से ४६९ तक