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________________ - समीक्षात्मक अध्ययन/२३ है। कषायपाहुड१९ की जयधवला टीका में तथा गोम्मटसार२० में क्रमशः गुणधर आचार्य ने और सिद्धान्तचक्रवर्ती नेमिचन्द्र ने अंगबाह्य के चौदह प्रकार बताये हैं। उनमें सातवाँ दशवैकालिक है और आठवाँ उत्तराध्ययन है। नन्दीसूत्र में आचार्य देववाचक ने अंगबाह्य श्रुत के दो विभाग किये हैं।२१ उनमें एक कालिक और दूसरा उत्कालिक है। कालिक सूत्रों की परिगणना में उत्तराध्ययन का प्रथम स्थान है और उत्कालिक सूत्रों की परिगणना में दशवैकालिक का प्रथम स्थान है। ___सामान्यरूप से मूलसूत्रों की संख्या चार है। मूलसूत्रों की संख्या के सम्बन्ध में विज्ञों के विभिन्न मत हम पर्व बता चके हैं। चाहे संख्या के सम्बन्ध में कितने ही मतभेद हों. पर सभी मनीषियों ने उत्तराध्ययन को मूलसूत्र माना है। 'उत्तराध्ययन' में दो शब्द हैं- उत्तर और अध्ययन। समवायांग में 'छत्तीसं उत्तरज्झयणाई' यह वाक्य मिलता है।२२ प्रस्तुत वाक्य में उत्तराध्ययन के छत्तीस अध्ययनों का प्रतिपादन नहीं किन्तु छत्तीस उत्तर अध्ययन प्रतिपादित किये गये हैं। नन्दीसूत्र में 'उत्तरण्झयणाणि' यह बहुवचनात्मक नाम प्राप्त है।२३ उत्तराध्ययन के अन्तिम अध्ययन की अन्तिम गाथा में 'छत्तीसं उत्तरज्झाए' इस प्रकार बहुवचनात्मक नाम मिलता है।२४ उत्तराध्ययननियुक्ति में भी उत्तराध्ययन का नाम बहुवचन में प्रयोग किया गया है।५ उत्तरध्ययनचूर्णि में छत्तीस उत्तराध्ययनों का एक श्रुतस्कंध माना है। तथापि उसका नाम चूर्णिकार ने बहुवचनात्मक माना है। बहुवचनात्मक नाम से यह विदित है कि उत्तराध्ययन अध्ययनों का एक योग मात्र है। यह एककर्तृक एक ग्रन्थ नहीं है। उत्तर शब्द पूर्व की अपेक्षा से है। जिनदासगणी महत्तर ने इन अध्ययनों की तीन प्रकार से योजना की है (१) स-उत्तर - पहला अध्ययन (२) निरुत्तर - छत्तीसवां अध्ययन (३) स-उत्तर-निरुत्तर - बीच के सारे अध्ययन परन्तु उत्तर शब्द की प्रस्तुत अर्थयोजना जिनदासगणी महत्तर की दष्टि से अधिकृत नहीं है।२७ वे नियुक्तिकार भद्रबाहु के द्वारा जो अर्थ दिया या है, उसे प्रामाणिक मानते हैं। नियुक्ति की दृष्टि से यह अध्ययन आचारांग के उत्तरकाल में पढ़े जाते थे, इसीलिए इस आगम को 'उत्तर अध्ययन' कहा है। उत्तराध्ययनचूर्णि व उत्तराध्ययन-बृहद्वृत्ति में भी प्रस्तुत कथन का समर्थन है। श्रुतकेवली आचार्य शय्यम्भव के पश्चात् यह अध्ययन १९. दसवेयालियं उत्तरायणं। -कषायपाहुड (जयधवला सहित) भाग १, पृष्ठ १३/२५ २०. दसवेयालं च उत्तरायणं। -गोम्मटसार (जीवकाण्ड), गाथा ३६७ २१. से किं तं कालियं? कालियं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा–उत्तरायणाई...। से किं तं उक्कालियं? उक्कालियं अणेगविहं पणत्तं तंजहा दसवेयालिया.... - नंदीसूत्र ४३ २२. समवायांग, समवाय ३६ २३. नन्दीसूत्र ४३ २४. उत्तराध्ययन ३६/२६८ २५. उत्तराध्ययनियुक्ति, गा.४ पृ.२१, पा. टि. ४ २६. एतेसिं चेव छत्तीसाए उत्तरज्झयणाणं समुदयसमितिसमागमेणं उत्तरायणभावसुत्तखंधे त्ति लब्भइ, ताणि पुण छत्तीसं उत्तरायणाणि इमेहिं नामेहिं अणुगंतव्वाणि। -उत्तराध्ययनचूर्णि, पृष्ठ ८ २७. विणसुयं सउत्तरं जीवाजीवाभिगमो णिरुत्तरो, सर्वोत्तर इत्यर्थः सेसज्झयणाणि सउत्तराणि णिरुत्तराणि, य, कह? परीसहा विणयसुयस्स उत्तरा चउरंगिजस्स तु पुव्या इति काउं णिरुत्तरं। -उत्तराध्ययनचूर्णि, पृष्ठ ६ २८. कमउत्तरेण पगयं आयारस्सेव उवरिमाई तु। तम्हा उ उत्तरा खलु अज्झयणा हुंति णायव्वा॥ -उत्तराध्ययननियुक्ति, गा. ३
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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