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________________ अष्टम अध्ययन कापिलीय अध्ययन-सार * प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'कापिलीय' है। नाम दो प्रकार से रखे जाते हैं-(१)निर्देश्य–विषय के आधार पर और (२) निर्देशक (वक्ता) के आधार पर। इस अध्ययन का निर्देशक कपिल' है, इसलिए इसका नाम 'कापिलीय' रखा गया। बृहद्वृत्ति के अनुसार-मुनि कपिल के द्वारा यह अध्ययन गाया गया था, इसलिए भी इसे 'कापिलीय' कहा जाता है। सूत्रकृतांग-चूर्णि में इस अध्ययन को गेय माना गया है। * अनुश्रुति ऐसी है कि एक बार कपिल श्रावस्ती से विहार करके जा रहे थे। मार्ग में महारण्य में उन्हें बलभद्र आदि चोरों ने घेर लिया। चोरों के अधिपति ने इन्हें श्रमण समझ कर कहा-'श्रमण! कुछ गाओ।' कपिल मुनि ने उन्हें सुलभबोधि समझ कर गायन प्रारम्भ किया-'अधुवे असासयंमि.।' यह ध्रुवपद था। प्रथम कपिल मुनि गाते, तत्पश्चात् चोर उनका अनुसरण करके तालियां पीट कर गाते। कई चोर प्रथम गाथा सुनते ही प्रबुद्ध हो गए, कई दूसरी, तीसरी, चौथी आदि गाथा सुनकर । इस प्रकार पूरा अध्ययन सुनकर वे ५०० ही चोर प्रतिबुद्ध हो गए। कपिल मुनिवर ने उन्हें दीक्षा दी। प्रस्तुत समग्र अध्ययन में प्रथम जिज्ञासा का उत्थान एवं तत्पश्चात् कपिल मुनि का ही उपदेश है। * प्रसंगवश इस अध्ययन में पूर्वसम्बन्धों के प्रति आसक्तित्याग का, ग्रन्थ, कलह, कामभोग, जीवहिंसा, रसलोलुपता के त्याग का, एषणाशुद्ध प्राप्त आहारसेवन का तथा लक्षणादि शास्त्रप्रयोग, लोभवृत्ति एवं स्त्री-आसक्ति के त्याग का एवं संसार की असारता का विशद उपदेश दिया गया है। * लोभवृत्ति के विषय में तो कपिल मुनि ने संक्षेप में स्वानुभव प्रकाशित किया है। कथा का उद्गम ___ संक्षेप में इस प्रकार है अनेक विद्याओं का पारगामी काश्यप ब्राह्मण कौशाम्बी नगरी के राजा प्रसेनजित का सम्मानित राजपुरोहित था। अचानक काश्यप की मृत्यु हो गई। कपिल उस समय अल्पवयस्क एवं अपठित था। इसलिए राजा ने काश्यप के स्थान पर दूसरे पण्डित की नियुक्ति कर दी। कपिल ने एक दिन विधवा माता यशा को रोते देख रोने का कारण पूछा तो उसने कहा-पुत्र! एक समय था, जब तेरे पिता इसी प्रकार के ठाठ-बाठ से राजसभा में जाते थे। वे अनेक विद्याओं में पारंगत थे, राजा भी उनसे प्रभावित १. (क) बृहद्वत्ति, पत्र २८९ (ख) सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ०७ (ग) आवश्यकनियुक्ति गा० १४१, वृत्ति-निर्देशकवशाजिनवचनं कापिलीयम्' २. जं गिज्जइ पुव्वं चिय, पुण-पुणो सव्वकव्वबंधेसु। धुवयंति तमिह तिविहं, छप्पायं चउपयं दुपये।" -बृहद्वृत्ति, पत्र २८९
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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