SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तराध्ययनसूत्र भिक्षापात्र लेकर गृहस्थों से निर्दोष आहार ग्रहण करे। (६) ग्राम, नगर आदि में नियत निवास करके प्रतिबद्ध होकर रहना प्रमाद है, अतः नियत निवासरहित अप्रतिबद्ध होकर विहार करे। (७) संयममर्यादा को तोड़ना निर्लज्जता — प्रमाद है, अतः साधु लज्जावान् (संयममर्यादावान्) रहकर अप्रमत्त होकर विचरण करे । अप्रमत्तशिरोमणि भगवान् महावीर द्वारा कथित अप्रमादोपदेश १०२ [१८] इस प्रकार (क्षुल्लक निर्ग्रन्थों के लिए अप्रमाद का उपदेश) अनुत्तरज्ञानी, अनुत्तरदर्शी, अनुत्तर ज्ञान- दर्शनधारक, अर्हन्- व्याख्याता, ज्ञातपुत्र, वैशालिक (तीर्थंकर) भगवान् (महावीर) ने कहा है । - ऐसा मैं कहता हूँ । १८. एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाणदंसणधरे । अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियाहिए ॥ - त्ति बेमि । विवेचन - अरहा : दो रूप : दो अर्थ - ( १ ) अर्हन्— त्रिलोकपूज्य, इन्द्रादि द्वारा पूजनीय, (२) अरहा— रह का अर्थ है— गुप्त — छिपा हुआ। जिनसे कोई भी बात गुप्त — छिपी हुई नहीं है, वे अरह कहलाते हैं । २ णायपुत्ते- ज्ञातपुत्र : तीन अर्थ - - (१) ज्ञात-उदार क्षत्रिय का पुत्र, (२) ज्ञातवंशीय क्षत्रिय-पुत्र, (३) ज्ञात — प्रसिद्ध सिद्धार्थ क्षत्रिय का पुत्र । ३ वेसालिए पांच रूप : छह अर्थ - (१) वैशालीय— जिसके विशाल गुण हों, (२) वैशालियविशाल इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न, (३) वैशालिक – जिसके शिष्य, तीर्थ ( शासन) तथा यश आदि गुण विशाल हों, अथवा वैशाली जिसकी माता हो वह, (४) विशालीय- विशाला — त्रिशाला का पुत्र । (५) विशालिक – जिसका प्रवचन विशाल हो । ४ ॥ क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय: षष्ठ अध्ययन समाप्त ॥ १. २. ३. ४. उत्तराध्ययन मूल, गा. १२ से १३ तक का निष्कर्ष (क) उत्तरा टीका, अ. रा. कोष ३/७५२ (क) बृहद्वृत्ति, पत्र २७० (ग) सुखबोधा, पत्र ११५ (क) उत्तरा चूर्णि, १५६-१५७ - (ख) आवश्यकसूत्र (ख) उत्तरा . चूर्णि, पृ. १५६ (घ) उत्तरा टीका, अ० रा० कोष ३ / ७५२ विशालं वचनं चास्य तेन वैशालिको जिनः ॥ वैशाली जननी यस्य, विशालं कुलमेव च । (ख) उत्तरा. टीका., अ. रा. कोष ३ / ७५२
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy