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________________ पंचम अध्ययन : अकाममरणीय मरणभय से संत्रस्त न होकर शान्ति से शरीर के नाश (भेद) की प्रतीक्षा करे। (अर्थात् देह की अब सार-संभाल न करे।) ३२. अह कालंमि सपंते आघायाय समुस्सयं । सकाम-मरणं मरई तिहमन्त्रयरं मुणी ॥ —त्ति बेमि । [३२] मृत्यु का समय आने पर भक्तपरज्ञा, इंगिनी अथवा पादोपगमन, इन तीनों से किसी एक को स्वीकार करके मुनि (संल्लेखना - समाधि-पूर्वक) (अन्दर से कार्मणशरीर और बाहर से औदारिक) शरीर का त्याग करता हुआ सकाममरण से मरता है । - ऐसा मैं कहता हूँ । ९१ विवेचन — 'तुलिया': दो व्याख्याएँ - ( १ ) अपने आपको तौल कर (अपनी धृति, दृढ़ता, उत्साह, शक्ति आदि की परीक्षा करके), (२) बालमरण और पण्डितमरण दोनों की तुलना करके । 'विसेसमादाय': दो व्याख्याएँ (१) विशेष - भक्तपरिज्ञा आदि तीन समाधिमरण के भेदों में से किसी एक मरणविशेष को स्वीकार करके, (२) बालमरण से पण्डितमरण को विशिष्ट जान कर । २ ताण अप्पणा विप्पसीएज्ज : दो व्याख्याएँ – (१) तथाभूत आत्मा से - मृत्यु के पूर्व अनाकुलचित्त था, मरणकाल में भी उसी रूप में अवस्थित आत्मा से, (२) तथाभूत उपशान्तमोहोदयरूप या निष्कषाय आत्मा से । विप्रसीदेत् — (१) विशेष रूप से प्रसन्न रहे, मृत्यु से उद्विग्न न हो, (२) कषायपंक दूर होने से स्वच्छ रहे, किन्तु बारह वर्ष तक की संलेखना का तथाविध तप करके अपनी अंगुली तोड़ कर गुरु को बताने वाले तपस्वी की तरह कषायकलुषता धारण किया हुआ न रहे । ३ आघायाय समुस्सयं : दो रूप, दो अर्थ - (१) आघातयन् समुच्छ्रयम् — बाह्य और आन्तरिक शरीर का नाश (त्याग) करता हुआ, (२) आघाताय समुच्छ्रयस्य — शरीर के विनाश (त्याग) का अवसर आने पर । ४ 'तिण्हमन्त्रयरं मुणी' की व्याख्या - तीन प्रकार के अनशनों (भक्तपरिज्ञा, इंगिनी और पादोपगमन) में से किसी एक के द्वारा देह त्याग करे । भक्तपरिज्ञा - चतुर्विध आहार तथा बाह्याभ्यन्तर उपधि का यावज्जीवन प्रत्याख्यानरूप अनशन, इंगिनी — अनशनकर्ता का निश्चित स्थान से बाहर न जाना, पादोपगमन— अनशनकर्ता का कटे वृक्ष की भांति स्थिर रहना, शरीर की सार-संभाल न करना । ॥ अकाममरणीय : पंचम अध्ययन समाप्त ॥ १. बृहद्वृत्ति, पत्र २५४ ५. (क) वही, पत्र २५४ ३. बृहद्वृत्ति, पत्र २५४ ४. बृहद्वृत्ति, पत्र २५४ २ . वही, पत्र २५४ (ख) उत्त. निर्युक्ति, गा. २२५. •
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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