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पंचम अध्ययन : अकाममरणीय
संसार - सागर को पार करना चाहते हो तो न तो चिर काल तक जीने का विचार करो और न ही शीघ्र मृत्यु का ।
'उक्कोसेण सइं भवे ' - इस गाथा में कहा गया है, कि 'पण्डितों (चारित्रवानों) का सकाममरण एक बार ही होता है। यह कथन केवलज्ञानी की उत्कृष्ट भूमिका की अपेक्षा से कहा गया है, क्योंकि अन्य चारित्रवान् साधकों का सकाममरण तो ७-८ बार हो सकता है। २
'बाल' तथा 'पण्डित' - ये दोनों पारिभाषिक विशिष्टार्थसूचक शब्द हैं। यहाँ बाल का विशेष अर्थ है— व्रतनियमादिरहित और पण्डित का विशेषार्थ है— व्रत - नियम-संयम में रत व्यक्ति । ३
अकाममरण : स्वरूप, अधिकारी, स्वभाव और दुष्परिणाम
४.
तत्थिमं पढमं ठाणं महावीरेण देसियं ।
काम-गिद्धे जहा बाले भिसं कूराइं कुव्वई ।।
[४] भगवान् महावीर ने पूर्वोक्त दो स्थानों में से प्रथम स्थान के विषय में यह कहा है कि कामभोगों में आसक्त बालजीव अत्यन्त क्रूर कर्म करता है ।
५.
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गिद्धे कामभोगे एगे कूडाय गच्छई । 'न मे दिट्ठे परे लोए चक्खू - दिट्ठा इमा रई ॥'
[५] जो काम-भोगों में आसक्त होता है, वह कूट ( मृगादि - बन्धन, नरक या मिथ्याभाषण) की ओर जाता है । (किसी के द्वारा इनके त्याग की प्रेरणा दिये जाने पर वह कहता है — ) 'मैंने परलोक को देखा नहीं; और यह रति (स्पर्शनादि कामभोग सेवन जनित - प्रीति - आनन्द) तो चक्षुदृष्ट ( — प्रत्यक्ष आँखों के सामने ) है । '
६.
'हत्थागया इमे कामा कालिया जे अणागया ।
को जाणइ परे लोए अत्थि वा नत्थि वा पुणो ॥'
[६] ये (प्रत्यक्ष दृश्यमान) कामभोग ( - सम्बन्धी सुख) तो ( अभी) हस्तगत हैं, जो भविष्य (आगामी भव) में प्राप्त होने वाले (सुख) हैं वे तो कालिक (अनिश्चित काल के बाद मिलने वाले— संदिग्ध ) हैं । कौन जानता है—परलोक है भी या नहीं?
७.
'जणेण सद्धि होक्खामि' इह बाले पगब्भई । काम - भोगाणुराएणं केसं संपविजई ॥
१. सह कामेन - अभिलाषेण वर्तते इति सकामं, मरणं प्रत्यसंत्रस्ततया तथात्वं चोत्सवभूतत्त्वात्तादृशां मरणस्य ।
तथा च वाचक:
संचिततपोधनानां नित्यं व्रतनियम-संयमरतानाम् ।
उत्सवभूतं मन्ये, मरणमनपराधवृत्तीनाम् ॥
न तु परमार्थतः तेषां, सकामं (मरणं) सकामत्वं : मरणाभिलाषस्यापि निषिद्धत्वात् । — बृहद्वृत्ति पत्र २४२ २ . वही, पत्र २४२
३. बृहद्वृत्ति, पत्र २४२ – तन्मरणस्योत्कर्षेण सकामता सकृद् एकवारमेव भवेत् :
जघन्येन तु शेषचारित्रिणः सप्ताष्ट वा वारान् भवेदित्याकृतम् ।'