________________
पंचम अध्ययन
७२
अकाममरणीय किया जाए, वह पादोपगमन कहलाता है। * समवायांगसूत्र में मरण के १७ भेद बताए हैं, जिनमें से भगवतीसूत्र में अंकित १२ भेद तो कहे जा चुके
हैं । शेष पांच भेद ये हैं—आवीचि, अवधि, आत्यन्तिक, छद्मस्थ और केवलिमरण । ये यहाँ अप्रासंगिक
* प्रस्तुत अध्ययन में निरूपित बालमरण और पण्डितमरण में इन सबको गतार्थ करके, पण्डितमरण का
ही प्रयत्न साधक को करना चाहिए, यही प्रेरणा यहाँ निहित है।
१. (क) भगवती २/१/९०, पत्र २१२, २१३ (ख) समवायांग सम०१७ वृत्ति, पत्र ३५
(ग) उत्त० नियुक्ति, गा० २२५ (घ) विजयोदया ७०, पत्र ११३, गोमट्टसार कर्मकाण्ड गा०६१ (ङ) मूलाराधना गा० २९