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________________ चतुर्थ अध्ययन : असंस्कृत ७५ [१२] कामभोग के मन्द स्पर्श भी बहुत लुभावने होते हैं, किन्तु संयमी तथाप्रकार के (अनुकूल) स्पर्शों में मन को संलग्न न करे । (आत्मरक्षक साधक) क्रोध से अपने को बचाए, अहंकार (मान) को हटाए, माया का सेवन न करे और लोभ का त्याग करे । विवेचन—फासा–यहाँ स्पर्श शब्द समस्त विषयों या कामभोगों का सूचक है । भगवद्गीता में स्पर्श शब्द इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है ।१ ___ मंदा-यहाँ 'मन्द' शब्द 'अनुकूल' अर्थ का वाचक है। अधर्मीजनों से सदा दूर रह कर अन्तिम समय तक आत्मगुणाराधना करे १३. जेसंखया तुच्छ परप्पवाई ते पिज-दोसाणुगया परज्झा । ___ एए 'अहम्मे' त्ति दुगुंछमाणो कंखे गुणे जाव सरीर-भेओ॥ -त्ति बेमि। [१३] जो व्यक्ति (ऊपर-ऊपर से) संस्कृत हैं, वे वस्तुत: तुच्छ हैं, दूसरों की निन्दा करने वाले हैं, प्रेय (राग) और द्वेष में फंसे हुए हैं, पराधीन (परवस्तुओं में आसक्त) हैं, ये सब अधर्म (धर्मरहित) हैं। ऐसा सोच कर उनसे उदासीन रहे और शरीरनाश-पर्यन्त आत्मगुणों (या सम्यग्दर्शनादि गुणों) की आराधना (महत्त्वाकांक्षा) करे। —ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन—संखया—सात अर्थ -(१) संस्कृतवचन वाले अर्थात् सर्वज्ञवचनों में दोष दिखाने वाले, (२) संस्कृत बोलने में रुचि वाले, (३) तथाकथित संस्कृत सिद्धान्त का प्ररूपण करने वाले, (४)ऊपरऊपर से संस्कृत-संस्कारी दिखाई देने वाले, (५) संस्कारवादी, और (६) असंखया-असंस्कृत-असहिष्णु या असमाधानकारी—गंवार, (७) जीवन संस्कृत हो सकता है—सांधा जा सकता है, यो मानने वाले। ॥असंस्कृत : चतुर्थ अध्ययन समाप्त॥ 100 १. (क) 'ये हि संस्पर्शजाः भोगाः दुःखयोनय एव ते।'- भगवद्गीता, अ० ५, श्लो० २२ (ख) बाह्यस्पर्शेष्वसत्तात्मा। -गीता ५/२१ (ग) 'मात्रा स्पर्शास्तु कौन्तेय!'-गीता २/१४ (घ) 'स्पर्शान् कृत्वा बहिर्बाह्यान्।' -गीता ५/२७ २. उत्तराज्झयणाणि (मु. नथमल) अ० ४, गा० ११ का अनुवाद, पृ० ५६ ३. (क) उत्त० चू०, पृ० १२६ (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र २२७ (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र २२७ (ग) महावीरवाणी (पं० बेचरदास), पृ० ९८ (ग) महा (घ) मनुस्मृतिकार आदि (ङ) उत्तरा० (डॉ. हरमन जेकोबी, सांडेसरा), पृ० ३७, फुटनोट २ (च) उत्त० (मुनि नथमल), अ० ४, गा० १३, पृ०५३
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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