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________________ २७६ २७६ २८० २८१ २८३ २८५ २८७ २८८ २८८ २९१ २९२ २९४ २९६ २९९ ३०० आचार-प्रणिधि की प्राप्ति के पश्चात् कर्त्तव्य-निर्देश की प्रतिज्ञा विभिन्न पहलुओं से विविध जीवों की हिंसा का निषेध अष्टविध सूक्ष्म जीवों की यतना का निर्देश प्रतिलेखन परिष्ठापन एवं सर्वक्रियाओं में यतना का निर्देश दुष्ट, श्रुत और अनुभूत के कथन में विवेक-निर्देश रसनेन्द्रिय और कर्णेन्द्रिय के विषयों में समत्वसाधना का निर्देश क्षुधा, तृषा आदि परीषहों को समभाव से सहने का उपदेश रात्रिभोजन का सर्वथा निषेध क्रोध-लोभ-मान-मद-माया-प्रमादादिका निषेध वीर्याचार की आराधना के विविध पहलू कषाय से हानि और इनके त्याग की प्रेरणा रत्नाधिकों के प्रति विनय और तप-संयम में पराक्रम की प्रेरणा प्रमादरहित होकर ज्ञानाचार में संलग्न रहने की प्रेरणा गुरु की पर्युपासना करने की विधि स्व-पर-अहितकर भाषा-निषेध ब्रह्मचर्य गप्ति के विविध अंगों के पालन का निर्देश प्रव्रज्याकालिक श्रद्धा अन्त तक सुरक्षित रखे आचारप्रणिधि का फल नवम अध्ययन : विनयसमाधि प्राथमिक (क) प्रथम उद्देशक अविनीत साधक द्वारा की गई गुरु-आशातना के दुष्परिणाम गुरु (आचार्य) के प्रति विविध रूपों में विनय का प्रयोग गुरु (आचार्य) की महिमा गुरु की आराधना का निर्देश और फल (ख) द्वितीय उद्देशक वृक्ष की उपमा से विनय के माहात्म्य और फल का निरूपण अविनीत और सुविनीत के दोप-गुण तथा कुफल-सुफल का निरूपण लौकिक विनय की तरह लोकोत्तर विनय की अनिवार्यता गुरुविनय करने की विधि अविनीत और विनीत को सम्पत्ति, मुक्ति आदि की अप्राप्ति एवं प्राप्ति का निरूपण (ग) तृतीय उद्देशक विनीत साधक की पूज्यता विनीत साधक को क्रमशः मुक्ति की उपलब्धता ३०३ ३०७ ३०७ ३१३ ३१७ ३१९ ३२० ३२२ ३२३ ३२५ ३२७ ३२९ ३३२ ३३८ [७९]
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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