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________________ ३४० ३४१ ३४२ ३४३ ३४४ ३४६ ३४८ ३५० ३५२ ३५६ ३५९ ३६५ (घ) चतुर्थ उद्देशक विनयसमाधि और उसके चार स्थान विनयसमाधि के चार प्रकार श्रुतसमाधि के प्रकार तप:समाधि के चार प्रकार आचारसमाधि के चार प्रकार चतुर्विध-समाधि-फल-निरूपण दशवां अध्ययन : स-भिक्षु प्राथमिक सद्भिक्षु : षट्कायरक्षक एवं पंचमहाव्रती आदि सद्गुण सम्पन्न सद्भिक्षु : श्रमणचर्या में सदा जागरूक सभिक्षु : आक्रोशादि परीषह-भय-कष्टसहिष्णु सभिक्षु : संयम, अमूर्छा, अगृद्धि आदि गुणों से समृद्ध प्रथम चूलिका : रतिवाक्या प्राथमिक संयम में शिथिल साधक के लिए अठारह आलोचनीय स्थान उत्प्रव्रजित के पश्चात्ताप के विविध विकल्प संयमभ्रष्ट गृहवासिजनों की दुर्दशा : विभिन्न दृष्टियों से श्रमणजीवन में दृढ़ता के लिए प्रेरणासूत्र द्वितीय चूलिका : विविक्तचर्या प्राथमिक चूलिका-प्रारंभप्रतिज्ञा, रचयिता और श्रवणलाभ सामान्यजनों से पृथक् चर्या के रूप में विविक्तचर्यानिर्देश भिक्षा, विहार और निवास आदि के रूप में एकान्त और पवित्र विविक्तचर्या एकान्त आत्मविचारणा के रूप में विविक्तचर्या प्रथम परिशिष्ट दशवैकालिकसूत्र का सूत्रानुक्रम द्वितीय परिशिष्ट कथा, दृष्टान्त, उदाहरण तृतीय परिशिष्ट प्रयुक्त ग्रन्थ-सूची ३६७ ३७१ ३७४ ३७७ ३८१ ३८३ ३८३ ३८५ ३९० ३९४ ४०३ ४१३ . [८०]
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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