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________________ ३३१ नवम अध्ययन : विनयसमाधि कर्मशत्रुओं के दलबल को समूल नष्ट करके अनुपम सिद्धिगति को प्राप्त होते हैं, हुए हैं और होंगे। यही इस गाथा का आशय है।६ 'विवत्ति' आदि शब्दों के विशेषार्थ विवत्ति-विपत्ति—इसका विशेष अर्थ है सद्गुणों सम्यग्ज्ञानादि सद्गुणों का नष्ट होना। संपत्ति सम्पत्ति —अर्थ होता है, सम्पदा। परन्तु यहां भौतिक सम्पत्ति नहीं, सम्यग्दर्शनादि आध्यात्मिक सम्पत्ति प्राप्त होती है, विनीत व्यक्ति को। दुहओ-दोनों प्रकार से हानि-वृद्धि को जो ज्ञात कर चुका है। अर्थात् —वह भलीभांति जानता है कि विनय से ही सद्गुणों की सम्प्राप्ति एवं वृद्धि होती है। अतः यही पूर्णतः उपादेय है तथा अविनय से दुर्गुणों की प्राप्ति और सद्गुणों की हानि होती है। अतः वह सर्वथा हेय है। मइइड्डिगारवे : तीन अर्थ (१) जो ऋद्धि-गौरव में अभिनिविष्ट है। (२) जो मति द्वारा ऋद्धिगौरव वहन करता है। (३) जिसे बुद्धि और ऋद्धि का गर्व है। साहस बिना सोचे-समझे आवेश में आकर कार्य (अकृत्य कार्य) करने में तत्पर रहता है। होणपेसणे हीनप्रेषण—प्रेषण के अर्थ हैं—आज्ञा, नियोजन या कार्य में प्रवृत्ति करना आदि। गुरु-आज्ञा को हीन (हेय समझ कर टालमटोल) करने वाला, यथासमय पालन न करने वाला। सुयत्थधम्मा : भावार्थ—(१) गीतार्थ, या (२) जिसने अर्थ और धर्म अथवा धर्म का अर्थ सुना है। ॥ नवम अध्ययन : विनयसमाधि : द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ १६. वही, पृ. ९०१ १७. (क) दशवै. (आ. आत्मा.), पृ.८९७ (ख) ऋद्धिगौरवमति: ऋद्धिगौरवाभिनिविष्टः । -हारि. वृत्ति, पत्र २५१ (ग) जो मतीए इड्ढि-गारवमुव्वहति । -अगस्त्यचूर्णि (घ) दसवेयालियं (मुनि नथमलजी), पृ. ४४७ (ङ) साहसिक:-अकृत्यकरणपरः । -हारि. वृत्ति, पत्र २५१ (च) रभसेणाकिच्चकारी साधसो । पेसणं जधाकालमुपपादयितुमसत्तो हीणपेसणो । सुतो अत्थो धम्मो जेहिं ते सुत्तत्थधम्मा। -अगस्त्यचूर्णि (छ) हीनप्रेषणः हीनगुर्वाज्ञापरः । श्रुतधर्मार्था गीतार्था इत्यर्थः । -हारि. वृत्ति, पत्र २५१
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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