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________________ O ● १. २. २. अट्टमं अज्झयणं : आयारपणिही अष्टम अध्ययन : आचार - प्रणिधि प्राथमिक यह दशवैकालिकसूत्र का आचार - प्रणिधि नामक आठवां अध्ययन है। आचार का वर्णन पहले तृतीय अध्ययन में संक्षेप से और छठे अध्ययन में विस्तार से किया गया है। इसका मुख्य प्रतिपाद्य है— आचार का प्रणिधान ।' बंधी - बंधाई आचारसंहिता पर चलना आसान है। जो आचार-विषयक नियमोपनियम तृतीय और छठे अध्ययन में बताए हैं, उन्हें स्थूलरूप से पालना सहज है। परन्तु आचार को पाकर निर्ग्रन्थ साधु या साध्वी को कैसे चलना चाहिए ? आचार की सरिता में अवगाहन करते समय मन, वचन, काया एवं इन्द्रियों को किस प्रकार प्रवाहित करना चाहिए ? यही पथप्रदर्शन इस अध्ययन में है। क्योंकि कई बार साधक स्थूल दृष्टि से आचार का पालन करता हुआ भी अन्तरंग से आचार में निष्ठा, एकाग्रता या प्रवृत्ति नहीं कर पाता। जिस प्रकार उच्छृंखल घोड़े सारथी को उत्पथ पर ले जाते हैं, वैसे ही दुष्प्रणिहित (रागद्वेषयुक्त) इन्द्रियां साधक को उत्पथ में भटका देती हैं। यह इन्द्रियों का दुष्प्रणिधान है । शब्दादि विषयों में इन्द्रियों का रागद्वेषयुक्त लगाव न होना—समत्वयुक्त प्रवृत्ति होना इन्द्रियों का सुप्रणिधान है। इसी प्रकार मन क्रोधादि कषाय या राग, द्वेष, मोह के प्रवाह में पड़कर भटक जाता है, इसे मन का दुष्प्रणिधान कहते हैं। किन्तु कषायों तथा रागद्वेषादि के प्रवाह में मन को न बहने देना, मन का सुप्रणिधान है। अतः ‘आचार-प्रणिधि' का अर्थ हुआ— आचार में इन्द्रियों और मन को सुप्रणिहित करना, एकाग्र करना या निहित करना। जिस प्रकार निधान (खजाने) में धन को सुरक्षित रखा जाता है, उसी प्रकार आचाररूपी धन को सुरक्षित रखने के लिए यह अध्ययन आचार की प्रकर्ष (उत्कृष्ट) निधि (निधान) है। 'जो पुव्विं उद्दिट्ठो, आयारो सो अहीणमइरित्तो ।' (क) दशवै. (संतबालजी), पृ. १०१ (ख) जस्स खलु दुप्पणिहिआणि इंदिआई तवं चरंतस्स । सो हीरइ असहीणेहिं सारही वा तुरंगेहिं ॥ २९९ ॥ सामन्नमणुचरंतस्स कसाया जस्स उक्कडा होंति । मन्नामि उच्छुप्फुल्लं व निष्फलं तस्स सामन्नं ॥ ३०१ ॥ — दश नियुक्ति, गा. २९३ — दशवै निर्युक्ति, गाथा २९९-३०१
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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