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________________ आचार की अन्तरंग निष्ठा या एकाग्रतापूर्वक आराधना करने वाले साधु या साध्वी को शक्ति होते हुए भी क्षमा रखनी पड़ती है, स्वयं में ज्ञान, बल, अधिकार और उच्च गुण होते हुए भी सामान्यजनों के प्रति समता और नम्रता धारण करनी पड़ती है। विरोध करने और शत्रुता रखने वाले व्यक्ति के प्रति भी समभाव रखना पड़ता है। अपने से आचार-पालन में दुर्बल अथवा स्थूल-दृष्टि से क्रियाकाण्ड में मन्द अथवा शास्त्रीय ज्ञान में न्यून साधकों के प्रति भी राग-द्वेष या मोह न करके समभाव रखना पड़ता है, दूसरों में गुणों की कमी होने पर भी सहन करना पड़ता है। सैकड़ों सेवक या भक्त हाजिर होते हुए भी स्वावलम्बी और संयमी बनना पड़ता है। सुख-सुविधाओं और प्रलोभनों के सरल प्रतीत होने वाले पथ पर चलने के लिए मन को शिथिल और चंचल न बनाते हुए त्याग, तप ओर संयम की संकीर्ण पगडंडी पर सावधानीपूर्वक चलना पड़ता है। सदाचार के पथ पर चलते हुए प्रतिक्षण हर मोड़ पर जागृत रहना पड़ता है। यही है आचार की प्रणिधि अर्थात् आचार को पाकर साधु को उसमें एकाग्रता, निष्ठा, मन-वचन-काय एवं इन्द्रियों की सुप्रणिहितता करनी है। यह अध्ययन 'प्रत्याख्यान-प्रवाद' नामक नौवें पूर्व की तीसरी वस्तु से उद्धृत किया गया है।' इसमें नेत्र, श्रोत्र आदि के दृष्ट, श्रुत के विघातक अंश को प्रकाशित करने का निषेध है, मन को स्वाध्याय, ध्यान आदि में लगाने का विधान है। कषायविजय, निद्राविजय, अट्टहासविरति, श्रद्धासातत्य, भावविशुद्धि, काय-ममत्व-विसर्जन, त्यागपथ पर बढ़ने की प्रेरणा एवं दैनिक व्यवहार में सावधानी का सुन्दर निर्देश है। अन्त में आत्मा से परमात्मा बनने की परकाष्ठा पर आचारप्रणिधि की पूर्णता बताई गई है। 0 0 00 ३. -दश. नियुक्ति (क) तम्हा अप्पसत्थं, पणिहाणं उज्झिऊण समणेणं । पणिहाणंमि पसत्थे भणिओ आयारपणिहि त्ति ॥ ३०८ ॥ (ख) दशवै. (संतबालजी), पृ. १०१-१०२ दश. नियुक्ति १/१७ दशवै. अ. ९/२०-२१, २७, ६१, ६३ ४. ५.
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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