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________________ २०० दशवैकालिकसूत्र २३१. सालुयं वा विरालियं कुमुउप्पलनालियं । मुणालियं सासवनालियं उच्छुखंडं अनिव्वुडं ॥ १८॥ २३२. तरुणगं वा पवालं रुक्खस्स तणगस्स वा ।। अन्नस्स वा वि हरियस्स आमगं परिवजए ॥ १९॥ २३३. तरुणियं वा छेवाडिं आमियं भज्जियं सई । देंतियं पडियाइक्खे ने मे कप्पइ तारिसं ॥ २०॥ २३४. तहा कोलमणुस्सिन्नं+ वेलुयं कासवनालियं । तिलपप्पडगं नीमं आमगं परिवजए ॥ २१॥ २३५. तहेव चाउलं पिटुं वियडं वा तत्तनिव्वुडं । तिलपिढें पूइपिन्नागं आमगं परिवज्जए ॥ २२॥ २३६. कविट्ठ माउलिंगं च मूलगं मूलगत्तियं । आमं असत्थपरिणयं मणसा वि न पत्थए ॥ २३॥ २३७. तहेव फलमंथूणि बीयमंथूणि जाणिया । बिहेलगं पियालं च आमगं परिवज्जए ॥ २४॥ [२२७-२२८] (यदि कोई दाता) उत्पल, पद्म, कुमुद या मालती अथवा अन्य किसी सचित्त पुष्प का छेदन करके (भिक्षा) दे तो वह भक्त-पान संयमी साधु-साध्वियों के लिए अकल्पनीय होता है, इसलिए (साधु या साध्वी) देती हुई उस दात्री स्त्री को निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार-पानी मेरे लिए ग्राह्य नहीं है ॥ १४-१५ ॥ [२२९-२३०] (यदि कोई दाता) उत्पल, पद्म, कुमुद या मालती अथवा अन्य किसी सचित्त पुष्प को सम्मर्दन (मसल या कुचल) कर भिक्षा देने लगे तो वह भक्त-पान संयमी साधु-साध्वियों के लिए अकल्पनीय होता है। (इसलिए आहार) देने वाली (उस महिला) को मुनि निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए अग्राह्य है ॥१६-१७॥ ___ [२३१-२३२] अनिर्वृत (जो शस्त्र से परिणत नहीं है, ऐसे) कमलकन्द, पलाशकन्द, कुमुदनाल, उत्पलनाल, कमल के तन्तु (मृणाल), सरसों की नाल, अपक्व इक्षुखण्ड (गण्डेरी) को अथवा वृक्ष, तृण और दूसरी हरी वनस्पति (हरियाली) का कच्चा नया प्रवाल (कोंपल) छोड़ दे, (ग्रहण न करे) ॥१८-१९॥ उप्पलं पउमं वा वि, कुमुवा मगदंतिअं । अन्नं वा पुप्फसच्चित्तं, तं च संघट्टिया दए ॥ १८ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिअं । दितिअ पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ १९॥ पाठान्तर- छिवाडि + कोलमणसिन्नं
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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