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________________ १९८ दशवकालिकसूत्र [२२०] इसी प्रकार (गोचरी के लिए जाते हुए साधु को.कहीं पर) भोजनार्थ एकत्रित हुए नाना प्रकार के (अथवा उच्च-नीचजातीय) प्राणी (दीखें तो) वह उनके सम्मुख न जाए, किन्तु यतनापूर्वक (वहां से बचकर) गमन करे, (ताकि उन प्राणियों को किसी प्रकार का त्रास न पहुंचे) ॥७॥ [२२१] गोचरी के लिए गया हुआ संयमी साधु (या साध्वी) कहीं भी न बैठे और न खड़ा रह कर भी (धर्म-) कथा का (विस्तारपूर्वक) प्रबन्ध करे ॥८॥ [२२२] गोचरी के लिए गया हुआ सम्यक् यतनावान् साधु अर्गला (आगल), परिघ (कपाट को ढांकने वाले फलक), द्वार (दरवाजा) एवं कपाट (किवाड़) का सहारा लेकर खड़ा न रहे ॥९॥ [२२३-२२४] भोजन (भक्त) अथवा पानी के लिए (गृहस्थ के द्वार पर) आते हुए (या गये हुए) श्रमण (बौद्ध श्रमण), ब्राह्मण, कृपण अथवा वनीपक (भिखारी अथवा भिक्षाचर) को लांघ (या हटा) कर संयमी साधु (गृहस्थ के घर में) प्रवेश न करे और न (उस समय गृहस्वामी एवं श्रमण आदि की) आंखों के समाने खड़ा रहे। किन्तु एकान्त में (एक ओर) जा कर वहां खड़ा हो जाए ॥१०-११॥ । [२२५] (उन भिक्षाचरों को लांघ कर या हटा कर घर में प्रवेश करने पर) उस वनीपक को या दाता (गृहस्वामी) को अथवा दोनों को (साधु के प्रति) अप्रीति उत्पन्न हो सकती है, अथवा प्रवचन (धर्म-शासन) की लघुता होती है ॥ १२॥ [२२६] (किन्तु गृहस्वामी द्वारा उन भिक्षाचरों को देने का) निषेध कर देने पर अथवा दे देने पर तथा वहां से उन याचकों के हट (या लौट) जाने पर संयमी साधु भोजन या पान के लिए (उस घर में) प्रवेश करे ॥ १३॥ विवेचन–भिक्षाटन के समय क्षेत्रादि-विवेक प्रस्तुत ७ सूत्रगाथाओं (२२० से २२६ तक) में भिक्षाचर्या करते समय गमनपथ का, खड़े रहने, बैठने तथा गृहप्रवेश करने का नैतिक एवं अहिंसक दृष्टि से विवेक बताया गया ऐसे मार्ग से होकर न जाए-भिक्षार्थ गमन करते समय रास्ते में कहीं चुग्गा-पानी करने या चारा-दाना करने में प्रवृत्त नाना प्रकार के छोटे-मोटे उच्च-नीच जातीय पक्षी या पशु एकत्रित हों, उस रास्ते से साधु-साध्वी को नहीं जाना चाहिए, क्योंकि उस रास्ते से जाने से साधु या साध्वी को देख कर वे भय से त्रस्त होकर भोजन करना बंद कर सकते हैं, उड़ सकते हैं या भागदौड़ कर सकते हैं। इससे उनके खाने-पीने में अन्तराय, वायुकाय की अयतना आदि दोषों की सम्भावना है। अतः साधु को उन पशु-पक्षियों को देख कर दूसरे मार्ग से यतनापूर्वक गमन करना चाहिए। अहिंसा महाव्रती साधु किसी भी जीव को भय या त्रास हो ऐसी कोई प्रवृत्ति नहीं करता।१२ ___ गोचरी के समय बैठने और कथा करने का निषेध भिक्षाचर्याकाल में गृहस्थ आदि.के घर में बैठना कालोचित चर्या नहीं, ब्रह्मचर्य एवं अनासक्ति की दृष्टि से भी उचित नहीं है। बैठना तो दूर रहा, खड़े रहकर भी धर्मकथा करना या गप्पे मारना उपर्युक्त कारणों से उचित नहीं है। वृत्तिकार कहते हैं वह खड़े-खड़े एक प्रश्नोत्तर (मंगलपाठ सुनाना आदि) कर सकता है। विस्तृत कथाप्रबन्ध करने से संयम के उपघात की एवं एषणासमिति की १२. (क) दशवै. (संतबालजी), पृ. ६३ (ख) 'तत्संत्रासनेनान्तरायाधिकरणादिदोषात ।' —हारि. वृत्ति, पत्र १८४
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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