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________________ पंचम अध्ययन :पिण्डैषणा १९७ है। अर्थात् जिस समय गृहस्थ लोग भिक्षा देने के लिए भिक्षाचरों को स्मरण करते हैं, उस समय को भिक्षा का स्मृतिकाल कहते हैं। कालेण य पडिक्कमे : तात्पर्य जब साधु यह जान ले कि अब भिक्षाचर्या का समय नहीं रहा, स्वाध्याय आदि का समय आ गया है तब वह तुरन्त भिक्षाटन करना बंद करके समय पर अपने स्थान पर वापस लौट आए जिससे अन्य स्वाध्यायादि आवश्यक कार्यक्रमों में विघ्न न पड़े। भिक्षा न मिलने पर भिक्षाचर्या के समय पर भिक्षा के लिए पुरुषार्थ करने पर भी यदि आहार न मिले या थोड़ा मिले, ऐसी स्थिति में साधु के मन में न तो उसका खेद होना चाहिए, न चिन्ता ही, बल्कि उसे यह सोच कर सन्तुष्ट और सहनशील होना चाहिए कि मुझे अनायास ही तपश्चर्या का लाभ मिला है। यह भी सोचना चाहिए कि मैंने तो भिक्षाचर्या के लिए जाकर अपने वीर्याचार का सम्यक्तया आराधन कर लिया है। वृत्तिकार ने कहा है "साधु वीर्याचार के लिए भिक्षाटन करता है, केवल आहार के लिए ही नहीं। ११ भिक्षार्थ गमनादि में यतना-निर्देश २२०. तहेवुच्चावया पाणा भत्तट्ठाए समागया । तउज्जुयंx न गच्छेज्जा, जयमेव परक्कमे ॥७॥ २२१. गोयरग्गपविट्ठो उ न निसीएज्ज कत्थई । कहं च न पबंधेजा, चिट्ठित्ताण व संजए ॥ ८॥ २२२. अग्गलं फलिहं दारं, कवाडं वा वि संजए । अवलंबिया न चिटेजा गोयरग्गगओ मुणी ॥९॥ २२३. समणं माहणं वा वि किविणं वा वणीमगं । उवसंकमंतं भत्तट्ठा पाणट्ठाए व संजए ॥ १०॥ २२४. तं अइक्कमित्तु न पविसे, न चिट्ठे चक्खुगोयरे । एगंतमवक्कमित्ता, तत्थ चिटेज संजए ॥ ११॥ २२५. वणीमगस्स वा तस्स दायगस्सुभयस्स वा । अपत्तियं सिया होज्जा लहुत्तं पवयणस्स वा ॥ १२॥ २२६. पडिसेहिए व दिने वा, तओ तम्मि नियत्तिए । उवसंकमेज भत्तट्ठा पाणट्ठाए व संजए ॥ १३॥ ९. 'सति' विद्यमाने काले भिक्षासमये चरेद् भिक्षुः । अन्ये तु व्याचक्षते-स्मृतिकाल एवं भिक्षाकालोऽभिधीयते, स्मर्यन्ते यत्र भिक्षाकाः स स्मृतिकालः । -हारि. वृत्ति, पत्र १८३ १०. दशवै. (आचार्य श्री आत्मारामजी म.), पृ. २५५ ११. (क) दशवै. आचारमणिमंजूषा टीका, भाग १, पृ. ५०४ (ख) 'तदर्थ च भिक्षाटनं नाहारार्थमेवातो न शोचयेत् ।' -हारि. वृत्ति, पत्र १८३ पाठान्तर–x तं उज्जुअं ।
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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