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पंचम अध्ययन :पिण्डैषणा
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१९२. तं च अच्चंबिलं पूर्वी नालं तण्हं विणेत्तए ।
___ देंतियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ११०॥ १९३. तं च होज अकामेणं विमणेण पडिच्छियं ।
तं अप्पणा न पिबे, नो वि अन्नस्स दावए ॥ १११॥ १९४. एगंतमवक्कमित्ता अचित्तं पडिलेहिया ।
जयं परिट्ठवेजा परिठप्प पडिक्कम्मे ॥ ११२॥ [१८८] इसी प्रकार (जैसे अशन के विषय में कहा है, वैसे ही) उच्चावच (अच्छा और बुरा) पानी, अथवा गुड़ के घड़े का धोवन, आटे का धोवन, चावल का धोवन, इनमें से यदि कोई तत्काल का धोया हुआ (धौत) हो, तो मुनि उसे ग्रहण न करे ॥ १०६॥
[१८९-१९०] यदि अपनी मति और दृष्टि से, पूछ कर अथवा सुन कर जिस धोवन को जान ले कि यह बहुत देर का धोया हुआ है तथा निःशंकित हो जाए तो जीवरहित (प्रासुक) और परिणत (शस्त्रपरिणत) जान कर संयमी मुनि उसे ग्रहण करे। यदि यह जल मेरे लिए उपयोगी होगा या नहीं ? इस प्रकार की शंका हो जाए, तो फिर उसे चख कर निश्चय करे ॥ १०७-१०८॥
[१९१] (चख कर निश्चय करने के लिए वह दाता से कहे—) 'चखने के लिए थोड़ा-सा यह पानी मेरे हाथ में दो।' यह पानी बहुत ही खट्टा, दुर्गन्धयुक्त है और मेरी तृषा (प्यास) बुझाने में असमर्थ होने से मेरे लिए उपयोगी न हो तो मुझे ग्राह्य नहीं ॥ १०९॥
. [१९२] (चखने के बाद प्रतीत हो कि-) यह जल बहुत ही खट्टा, दुर्गन्धयुक्त और प्यास बुझाने में असमर्थ है, तो देती हुई उस महिला को मुनि निषेध कर दे कि इस प्रकार का धोवन-जल मैं ग्रहण नहीं कर सकता ॥११० ॥
[१९३] यदि वह धोवन-पानी अपनी अनिच्छा से अथवा अन्यमनस्कता (असावधानी) से ग्रहण कर लिया गया हो तो, न तो उसे स्वयं पीए और न ही किसी अन्य साधु को पीने को दे ॥ १११॥
[१९४] वह (उस धोवन को लेकर) एकान्त में जाए, वहां अचित्त भूमि को देख (प्रतिलेखन) करके यतनापूर्वक उसे प्रतिष्ठापित कर दे (परिठा दे)। परिष्ठापन करने के पश्चात् स्थान में आकर वह (मुनि) प्रतिक्रमण करे ॥ ११२॥
विवेचन-जल के अग्रहण, ग्रहण और परिष्ठापन की विधि-मुनि को प्यास बुझाने के लिए अचित्त पानी की आवश्यकता होती है। सचित्त पानी वह ले नहीं सकता। आचारांगसूत्र में २१ प्रकार का प्रासुक और एषणीय पान साधु-साध्वियों के लिए ग्राह्य बताया है, किन्तु कोई गृहस्थ दाता चावल, आटे या गुड़ आदि के घड़े का तत्काल धोया हुआ पानी साधु-साध्वी को देना चाहे तो उसे तब तक वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श में परिवर्तन तथा शस्त्रपरिणत न जान कर सचित्त समझ कर न ले। किन्तु अपनी बुद्धि एवं ऊहापोह एवं पूछताछ करके देख-सुन कर यह निश्चय कर ले कि यह धोवन काफी देर का धोया हुआ है तब वह उसे ग्रहण कर ले। किन्तु कदाचित् वह धोवन अत्यन्त खट्टा, बदबूदार एवं प्यास बुझाने में अनुपयोगी हो और असावधानी से, अनिच्छा से ले लिया गया हो, तो न स्वयं पीए और न दूसरों को पीने को दे। किन्तु एकान्त में विधिपूर्वक उसका परिष्ठापन कर दे।