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________________ १८२ दशवकालिकसूत्र वृत्ति के अनुसार बहुत बीजक वनस्पति के प्रकरण में, भगवती और प्रज्ञापना में अस्थिक शब्द प्रयुक्त हुआ है। इसे हिन्दी में अगस्तिया, अगथिया, हत्थिया या हदगा कहते हैं। इसके फल और फली होते हैं। तेंदुयं : तिन्दुक :विशेषार्थ तेन्दू का अर्थ टींबरू होता है। यह फल पकने पर नींबू के समान पीले रंग का होता है। पूर्वी बंगाल, बर्मा आदि के जंगलों में पाया जाता है। सिंबलिं : दो अर्थ (१) देशी नाममाला के अनुसार शाल्मलि (सेमल), (२) सिंबलि—सींगा (फली) अथवा वल्ल (वाल) आदि की फली। बहु-उज्झय-धर्मक–जिनमें खाद्यांश कम हो और त्याज्यांश अधिक हो ऐसे फल या फलियां। ये सब पक्व होने पर भी ग्राह्य नहीं होते। पान-ग्रहण-निषेध-विधान १८८. तहेवुच्चावयं पाणं अदुवा वारधोवणं । संसेइमं चाउलोदगं अहुणाधोयं विवज्जए ॥ १०६॥ १८९. जं जाणेज चिराधोयं मईए दंसणेण वा ।। पडिपुच्छिऊण सोच्चा वा, जं च निस्संकियं भवे ॥ १०७॥ १९०. अजीवं परिणयं नच्चा पडिगाहेज संजए । अह संकियं भवेजा आसाइत्ताण रोयए ॥ १०८॥ १९१. "थोवमासायणट्ठाए हत्थगम्मि दलाहि मे ।" मा मे अच्चंबिलं पूई नालं तण्हं विणेत्तए ॥ १०९॥ ७८. (क) दशवैकालिक (आचारमणिमंजूषा टीका), भग १, पृ. ४६५-४६६ (ख) दशवै. (संतबालजी), पृ. ५६ (ग) दशवै. (आचार्य श्री आत्मारामजी म.), पृ. २१२ (घ) 'सीताफलं गण्डमा वैदेहीवल्लभं तथा । कृष्णबीजं चाग्रिमाख्यमातृप्यं बहुबीजकम् ॥' -निघण्टुकोष (ङ) 'फलबीजे पुमानष्ठिः ।' -शब्दकल्पद्रुम (च) अणिमिस त्रि. (अनिमेष)—पलक न मारा हुआ और वनस्पतिविशेष। –अर्धमागधी कोष, प्रथाम भाग, पृ. १८१ (छ) 'अस्थिकं'–अस्थिकवृक्षफलम् । (ज) शालिग्रामनिघण्टु भू., पृ. ५२३ (झ) 'अच्छियं।' –जिन. चूर्णि, पृ. १८४ () पित्तश्लेष्मघ्नमम्लं च वातलं चाक्षिकीफलम् । -चरकसूत्र २७/१६० (ट) तिंदुयं—टिंबरुयं । —जिन. चूर्णि, पृ. १८ (ठ) नालंदा विशाल शब्दसागर (ड) सामरी-सिंबलिए,-सामरी शाल्मलिः । -देशीनाममाला ८/२३ (ढ) 'सिंबलि-सिंगा ।'–जिन. चू., पृ. १८४ (ण) 'शाल्मलिं वा वल्लादिफलिम् ।' ७९.. '...एताणि सत्थो व हताणि वि अनमि समुदाणे फासुए लब्भमाणे ण गिण्हियव्वाणि।' –जिन.चू., पृ. १८४-१८५
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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