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________________ पंचम अध्ययनःपिण्डैषणा १६७ स्वामी की अनुमति-अनुज्ञा से लेनी चाहिए, अन्यथा अदत्तादान दोष लगता है। अनुमति के बिना लेने पर उड्डाह (अपवाद) एवं निग्रह की भी संभावना है। दोण्हं तु भुंजमाणाणं : अर्थ और फलितार्थ— 'भुंज' धातु दो अर्थों में प्रयुक्त होती है—(१) पालन. और (२) अभ्यवहरण (भोजन), इस दृष्टि से यहां इस पंक्ति का अर्थ होगा—एक ही वस्तु के दो स्वामी हों अथवा एक ही भोजन को दो व्यक्ति खाने वाले हों। उनमें से एक व्यक्ति देने में सहमत न हो तो वह आहार अनिसृष्ट दोषयुक्त कहलाता है, वह साधु के लिए ग्राह्य नहीं है।६ छंदं तु पडिलेहए : फलितार्थ— छंद का अर्थ है—अभिप्राय। वस्तु के दूसरे स्वामी के चेहरे के हावभाव, नेत्र और मुख की चेष्टा आदि से मुनि उसका अभिप्राय जाने। यदि दूसरे स्वामी को कोई आपत्ति न हो तो उसकी स्पष्ट अनुमति के बिना भी मुनि एक स्वामी द्वारा प्रदत्त आहार ग्रहण कर सकता है और यदि दूसरे स्वामी को अपना आहार मुनि को देना अभीष्ट न हो, वह प्रकट में आपत्ति करता हो या नहीं, तो ऐसी स्थिति में मुनि एक स्वामी द्वारा प्रदत्त आहार भी नहीं ले सकता। गर्भवती एवं स्तनपायिनी नारी से भोजन लेने का निषेध-विधान १३६. गुठ्विणीए उवन्नत्थं विविहं पाणभोयणं । भुजमाणं विवजेजा, भुत्तसेसं पडिच्छए ॥५४॥ १३७. सिया य समणट्ठाए, गुठ्विणी कालमासिणी । उट्ठिया वा निसीएज्जा, निसन्ना वा पुणुझुए ॥ ५५॥ १३८. तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । देंतियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥५६॥ १३९. थणगं पेजमाणी दारगं वा कुमारियं । तं निक्खिवित्तु रोवंतं, आहरे पाणभोयणं ॥५७॥ १४०. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥५८॥ [१३६] गर्भवती स्त्री के लिए (विशेषरूप से) तैयार किए गए विविध पान (पेय पदार्थ) और भोजन (भोज्य ५५. दसवेयालियं (मुनि नथमल जी), पृ. २३२ ५६. (क) द्वयोर्भुजतो:—पालनां कुर्वतोः एकस्य वस्तुनः स्वामिनोरित्यर्थः ।...एवं भुंजानयोः अभ्यवहारायोद्यतयोरपि योजनीयः । यतो भुजिः पालनेऽभ्यवहारे च वर्तते । —हारि. वृत्ति, पत्र १७१ (ख) तद्दीयमानं नेच्छेदुत्सर्गतः, अपितु....अभिप्रायं द्वितीयस्य प्रत्युपेक्षेत नेत्रवक्त्रादिविकारैः किमस्येदमिष्टं दीयमानं न वेति ? इष्टं चेद् गृण्हीयान्न चेन्नैवेति । -हारि. वृत्ति, पत्र १७१ ५७. आगारिंगित-चेट्ठागुणेहिं, भासाविसेस-करणेहिं । मुह-णयण-विकारेहि य, घेप्पति अंतग्गतो भावो ॥ —अ. चू., पृ. ११० 'णाताभिप्पतास्स जदि इदं तो घेप्पति. ण अण्णहा ।' -वही, पृ. ११०
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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