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दूसरी दशा]
उत्तर-स्थविर भगवन्तों ने वे इक्कीस शबल दोष इस प्रकार कहे हैं, जैसे
१. हस्तकर्म करने वाला शबल दोषयुक्त है। २. मैथुन प्रतिसेवन करने वाला शबल दोषयुक्त है। ३. रात्रिभोजन करने वाला शबल दोषयुक्त है। ४. आधाकर्मिक आहार खाने वाला शबल दोषयुक्त है। ५. राजपिंड को खाने वाला शबल दोषयुक्त है। ६. साधु के उद्देश्य से निर्मित, साधु के लिए मूल्य से खरीदा हुआ, उधार लाया हुआ, निर्बल से छीनकर लाया हुआ, बिना आज्ञा से लाया हुआ अथवा साधु के स्थान पर लाकर के दिया हुआ आहार खाने वाला शबल दोषयुक्त है। ७. पुनः-पुनः प्रत्याख्यान करके आहार खाने वाला शबल दोषयुक्त है। ८. छह माह के भीतर ही एक गण से दूसरे गण में जाने वाला शबल दोषयुक्त है। ९. एक मास के भीतर तीन बार (नदी आदि को पार करते हुए) उदक-लेप (जल संस्पर्श) लगाने वाला शबल दोषयुक्त है। १०. एक मास के भीतर तीन बार माया करने वाला शबल दोषयुक्त है। ११. शय्यातर के आहारादि को खाने वाला शबल दोषयुक्त है। १२. जान-बूझ कर जीव हिंसा करने वाला शबल दोषयुक्त है। १३. जान-बूझ कर असत्य बोलने वाला शबल दोषयुक्त है। १४. जान-बूझ कर अदत्त वस्तु को ग्रहण करने वाला शबल दोषयुक्त है। १५. जान-बूझ कर स
सचित्त पृथ्वी के निकट की भूमि पर कायोत्सर्ग, शयन या आसन करने वाला शबल दोषयुक्त है। १६. जानबूझ कर सचित्त जल से स्निग्ध पृथ्वी पर और सचित्त रज से युक्त पृथ्वी पर स्थान, शयन या आसन करने वाला शबल दोषयुक्त है। १७. जान-बूझ कर सचित्त शिला पर, सचित्त पत्थर के ढेले पर, दीमक लगे हुए जीवयुक्त काष्ठ पर तथा अण्डों युक्त, द्वीन्द्रियादि जीवयुक्त, बीजयुक्त, हरित तृणादि से युक्त, ओसयुक्त, जलयुक्त, पिपीलिका (कीड़ी) नगरयुक्त, पनक (शेवाल) युक्त, गीली मिट्टी पर तथा मकड़ी के जालेयुक्त स्थान पर स्थान, शयन और आसन करने वाला शबल दोष-युक्त है। १८. जान-बूझ करके १. मूल २. कन्द ३. स्कन्ध ४. छाल ५. कोंपल ६.पत्र ७. पुष्प ८. फल ९. बीज और १०. हरी वनस्पति का भोजन करने वाला शबल दोषयुक्त है। १९. एक वर्ष के भीतर दस वार उदक-लेप लगाने वाला शबल दोषयुक्त है। २०. एक वर्ष के भीतर दस बार मायास्थान सेवन करने वाला शबल दोषयुक्त है। २१. जान-बूझ करके शीतल-सचित्त जल से गीले हाथ, पात्र, चम्मच या भोजन के अशन, पान, खादिम या स्वादिम को ग्रहण कर खाने वाला शबल दोषयुक्त है। __ स्थविर भगवन्तों ने ये इक्कीस शबल दोष कहे हैं। ऐसा मैं कहता हूँ।
विवेचन-पहली दशा में संयम के सामान्य दोष-बीस असमाधिस्थानों का कथन है। इस दूसरी दशा में इक्कीस प्रबल दोषों का कथन है। ये 'शबल' दोष संयम के मूल महाव्रतों को क्षति पहुँचाने वाले हैं, अतः इनके सेवन से आत्मा कर्मबद्ध होकर दुर्गति को प्राप्त करती है। इन दोषों के प्रायश्चित्त भी प्रायः अनुद्धातिक (गुरु) मासिक या चौमासिक होते हैं।
१. हस्तकर्म-मोहनीयकर्म के प्रबल उदय से अनेक अज्ञानी प्राणी इस कुटेव से कलंकित हो जाते हैं। विरक्त साधक भी किसी अज्ञान के कारण इस कुटेव की कुटिलता से ग्रस्त न हो जाए, इसलिए इसको शबल दोष कहा है और निशीथसूत्र प्रथम उद्देशक के प्रथम सूत्र में भी इस दोष का प्रायश्चित्त कहा है।