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________________ १९२ १९३ १९३ १९४ १९९ २०० २०१ २०३ २०४ २०४ २०५ २०६ २०७ स्वामी-रहित घर की पूर्वाज्ञा एवं पुनः आज्ञा का विधान पूर्वाज्ञा से मार्ग आदि में ठहरने का विधान सेना में समीपवर्ती क्षेत्र में गोचरी जाने का विधान एवं रात रहने का प्रायश्चित्त अवग्रहक्षेत्र का प्रमाण तीसरे उद्देशक का सारांश चौथा उद्देशक अनुद्घातिक प्रायश्चित्त के स्थान पाराञ्चिक प्रायश्चित्त के स्थान अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त के स्थान वाचना देने के योग्यायोग्य के लक्षण शिक्षा-प्राप्ति के योग्यायोग्य के लक्षण ग्लान को मैथुनभाव का प्रायश्चित्त प्रथम प्रहर के आहारं को चतुर्थ प्रहर में रखने का निषेध दो कोस से आगे आहार ले जाने का निषेध अनाभोग से ग्रहण किये अनेषणीय आहार की विधि औद्देशिक आहार के कल्प्याकल्प्य का विधान श्रुतग्रहण के लिये अन्य गण में जाने का विधि-निषेध सांभोगिक-व्यवहार के लिये अन्य गण में जाने की विधि आचार्य आदि को वाचना देने के लिये अन्य गण में जाने का विधि-निषेध कलह करने वाले भिक्षु से सम्बन्धित विधि-निषेध परिहार-कल्पस्थित भिक्षु की वैयावृत्य करने का विधान महानदी पार करने के विधि-निषेध । घास से ढकी हुई छत वाले उपाश्रय में रहने के विधि-निषेध चौथे उद्देशक का सारांश पांचवां उद्देशक विकुर्वित दिव्य शरीर के स्पर्श से उत्पन्न मैथुनभाव का प्रायश्चित्त कलहकृत आगन्तुक भिक्षु के प्रति कर्तव्य रात्रिभोजन के अतिचार का विवेक एवं प्रायश्चित्त विधान उद्गाल सम्बन्धी विवेक एवं प्रायश्चित्त विधान संसक्त आहार के खाने एवं परठने का विधान सचित्त जलबिन्दु मिले आहार को खाने एवं परठने का विधान पशु-पक्षी के स्पर्शादि से उत्पन्न मैथुनभाव के प्रायश्चित्त २०९ २११ २१६ २२१ २२२ २२४ २२५ २२९ २३० २३० २३३ २३४ २३५ २३६
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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