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[व्यवहारसूत्र ८. कुल-वेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ। ९. गण-वेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ। १०. संघ-वेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ।
३७. वैयावृत्य दस प्रकार का कहा गया है, जैसे-१. आचार्य-वैयावृत्य, २. उपाध्यायवैयावृत्य, ३. स्थविर-वैयावृत्य, ४. तपस्वी-वैयावृत्य, ५. शैक्ष-वैयावृत्य, ६. ग्लान-वैयावृत्य, ७. साधर्मिकवैयावृत्य, ८. कुल-वैयावृत्य, ९. गण-वैयावृत्य, १०. संघ-वैयावृत्य।।
१. आचार्य की वैयावृत्य करने वाला श्रमण-निर्गन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है।
२. उपाध्यय की वैयावृत्य करने वाला श्रमण-निर्गन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है।
३. स्थविर की वैयावृत्य करने वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है।
४. तपस्वी की वैयावृत्य करने वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है।
५. शैक्ष की वैयावृत्य करने वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है।
६. ग्लान की वैयावृत्य करने वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है।
७. साधर्मिक की वैयावृत्य करने वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है।
८. कुल की वैयावृत्य करने वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है।
९. गण की वैयावृत्य करने वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है।
१०. संघ की वैयावृत्य करने वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है।
विवेचन-पूर्वसूत्र में निर्जरा के प्रमुख साधन रूप स्वाध्याय का कथन किया गया है और प्रस्तुत सूत्र में वैयावृत्य से महानिर्जरा एवं महापर्यवसान अर्थात् मोक्षप्राप्ति का कथन किया गया है।
यहां आचार्य आदि दसों के कथन में वैयावृत्य के पात्र सभी साधुओं का समावेश कर दिया गया है।
यह वैयावृत्य भाष्य में तेरह प्रकार का कहा गया है, यथा(१) आहार-उक्त आचार्य आदि के लिये यथायोग्य आहार लाना व देना आदि।