SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 519
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३८] [व्यवहारसूत्र चौथ के दिन भोजन और पानी की बारह-बारह दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। पांचम के दिन भोजन और पानी की ग्यारह-ग्यारह दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। छठ के दिन भोजन और पानी की दश-दश दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। सातम के दिन भोजन और पानी की नव-नव दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। आठम के दिन भोजन और पानी की आठ-आठ दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। नवमी के दिन भोजन और पानी की सात-सात दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। दसमी के दिन भोजन और पानी की छह-छह दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। ग्यारस के दिन भोजन और पानी की पांच-पांच दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। बारस के दिन भोजन और पानी की चार-चार दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। तेरस के दिन भोजन और पानी की तीन-तीन दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। चौदस के दिन भोजन और पानी की दो-दो दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। अमावस्या के दिन भोजन और पानी की एक-एक दत्ति ग्रहण करना कल्पता है। शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन भोजन और पानी की दो-दो दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। द्वितीया के दिन भोजन और पानी की तीन-तीन दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। तीज के दिन भोजन और पानी की चार-चार दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। चौथ के दिन भोजन और पानी की पांच-पांच दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। पांचम के दिन भोजन और पानी की छह-छह दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। छठ के दिन भोजन और पानी की सात-सात दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। सातम के दिन भोजन और पानी की आठ-आठ दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। आठम के दिन भोजन और पानी की नव-नव दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। नवमी के दिन भोजन और पानी की दश-दश दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। दसमी के दिन भोजन और पानी की ग्यारह-ग्यारह दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। ग्यारस के दिन भोजन और पानी की बारह-बारह दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। बारस के दिन भोजन और पानी की तेरह-तेरह दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। तेरस के दिन भोजन और पानी की चौदह-चौदह दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। चौदस के दिन भोजन और पानी की पन्द्रह-पन्द्रह दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। पूर्णिमा के दिन वह उपवास करता है। इस प्रकार वह वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा सूत्रानुसार यावत् जिनाज्ञानुसार पालन की जाती है। विवेचन-जिस प्रकार शुक्लपक्ष में चन्द्र की कलाएं बढ़ती हैं और कृष्णपक्ष में घटती हैं, उसी प्रकार इन दोनों प्रतिमाओं में आहार की दत्तिओं की संख्या तिथियों के क्रम में घटाई और बढ़ाई जाती हैं। इसलिए इन दोनों प्रतिमाओं को 'चन्द्रप्रतिमा' कहा गया है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy