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[व्यवहारसूत्र
१. दो प्रतिमायें कही गई हैं, यथा-१. यवमध्यचन्द्रप्रतिमा, २. वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा।
यवमध्यचन्द्रप्रतिमा स्वीकार करने वाला अनगार एक मास तक शरीर के परिकर्म से तथा शरीर के ममत्व से रहित होकर रहे । उस समय जो कोई भी देव, मनुष्य एवं तिर्यंचकृत अनुकूल या प्रतिकूल परीषह एवं उपसर्ग उत्पन्न हों, यथा
___अनुकूल परीषह एवं उपसर्ग ये हैं-कोई वन्दना नमस्कार करे, सत्कार-सम्मान करे, कल्याणरूप, मंगलरूप, देवरूप और ज्ञानरूप मानकर पर्युपासना करे।
___ प्रतिकूल परीषह एवं उपसर्ग ये हैं-किसी दण्ड, हड्डी, जोत, बेंत अथवा चाबुक से शरीर पर प्रहार करे। वह इन सब अनुकूल-प्रतिकूल उत्पन्न हुए परीषहों एवं उपसर्गों को प्रसन्न या खिन्न न होकर समभाव से सहन करे, उस व्यक्ति के प्रति क्षमाभाव धारण करे, वीरतापूर्वक सहन करे और शांति से आनन्दानुभाव करते हुए सहन करे।
__ यवमध्यचन्द्रप्रतिमा के आराधक अणगार को, शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन आहार और पानी की एक-एक दत्ति ग्रहण करना कल्पता है।
___ आहार की आकांक्षा करने वाले सभी द्विपद, चतुष्पद आदि प्राणी आहार लेकर लौट गये हों तब उसे अज्ञात स्थान से शुद्ध अल्पलेप वाला आहार लेना कल्पता है।
अनेक श्रमण यावत् भिखारी आहार लेकर लौट गये हों अर्थात् वहां खड़े न हों तो आहार लेना कल्पता है।
एक व्यक्ति के भोजन में से आहार लेना कल्पता है, किंतु दो, तीन, चार या पांच व्यक्ति के भोजन में से लेना नहीं कल्पता है।
___ गर्भवती, छोटे बच्चे वाली और बच्चे को दूध पिलाने वाली के हाथ से आहार लेना नहीं कल्पता है।
दाता के दोनों पैर देहली के अन्दर हों या बाहर हों तो उससे आहार लेना नहीं कल्पता है।
यदि ऐसा जाने कि दाता एक पैर देहली के अन्दर और एक पैर देहली के बाहर रखकर देहली को पैरों के बीच में करके दे रहा है तो उसके हाथ से आहार लेना कल्पता है।
शुक्लपक्ष की द्वितीया के दिन प्रतिमाधारी अणगार को भोजन और पानी की दो-दो दत्तियां लेना कल्पता है।
तीन के दिन भोजन और पानी की तीन-तीन दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। चौथ के दिन भोजन और पानी की चार-चार दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। पांचम के दिन भोजन और पानी की पांच-पांच दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। छठ के दिन भोजन और पानी की छह-छह दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। सातम के दिन भोजन और पानी की सात-सात दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। आठम के दिन भोजन और पानी की आठ-आठ दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है।