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________________ नवम उद्देशक] [४२५ दिन होते हैं और भिक्षादति की कुल अधिकतम संख्या १९६ होती है। ये दत्तियां आहार की अपेक्षा से हैं। पानी की अपेक्षा भी इतनी ही दत्तियां समझ लेनी चाहिए। इसी प्रकार अष्टअष्टमिका भिक्षुप्रतिमा-आठ अष्टक से ६४ दिनों में पूर्ण की जाती है। जिसमें प्रथम आठ दिन में एक दत्ति आहार की एवं एक ही दत्ति पानी की ली जाती है। इस प्रकार बढ़ाते हुए आठवें अष्टक में प्रतिदिन आठ दत्ति आहार की एवं आठ दत्ति पानी की ली जा सकती है। इस प्रकार कुल ६४ दिन और २८८ भिक्षादत्ति हो जाती हैं। इसी प्रकार 'नवनवमिका' और दसदसमिकाप्रतिमा के भी सूत्रोक्त दिन और दत्तियों का प्रमाण समझ लेना चाहिए। बृहत्कल्प उ. ५ में साध्वी को अकेले गोचरी जाने का भी निषेध किया है। अतः इन प्रतिमाओं में स्वतन्त्र गोचरी लाने वाली साध्वी के साथ अन्य साध्वियों को रखना आवश्यक है, किन्तु गोचरी तो वह स्वयं ही करती है। इन प्रतिमाओं को भी सूत्र में 'भिक्षुप्रतिमा' शब्द से ही सूचित किया गया है। फिर भी इनको धारण करने में बारह भिक्षुप्रतिमाओं के समान पूर्वो का ज्ञान या विशिष्ट संहनन की आवश्यकता नहीं होती है। मोक-प्रतिमा-विधान ४१. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-१. खुड्डिया वा मोयपडिमा, २. महल्लिया वा मोयपडिमा।खुड्डियंणं मोयपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स कप्पइ पढम-सरय-कालसमयंसि वा चरिम-निदाह-कालसमयंसि वा, बहिया गामस्स वा जावरायहाणीए वा वणंसि वा वणदुग्गंसि वा पव्वयंसिवा पव्वदुग्गंसिवा।भोच्चा आरुभइ, चोइसमेणं पारेइ, अभोच्चा आरुभइ, सोलसमेण पारेइ।जाए-जाए मोए आगच्छइ, ताए-ताए आईयव्वे।दिया आगच्छइ आईयव्वे, रत्तिं आगच्छइ नो आईयव्वे। सपाणे मत्ते आगच्छइ नो आईयव्वे, अपाणे मत्ते आगच्छइ आईयव्वे। सबीए मत्ते आगच्छइ नो आईयव्वे, अबीए मत्ते आगच्छइ आईयव्वे। ससणिद्धे मत्ते आगच्छइ नो आईयव्वे अससणिद्धे मत्ते आगच्छइआईयव्वे।ससरक्खे मत्ते आगच्छइनो आईयव्वे, अससरक्खे मत्ते आगच्छइ आईयव्वे। जावइए-जावइए मोए आगच्छइ, तावइए-तावइए सव्वे आईयव्वे, तं जहा-अप्पे वा, बहुए वा। एवं खलु एसा खुड्डिया मोयपडिमा अहासुत्तं जाव आणाए अणुपालित्ता भवइ। ४२.महल्लियंणं मोयपडिमं पडिवनस्सअणगारस्स कप्पइ पढम-सरय-कालसमयंसि वा, चरम-निदाह-कालसमयंसिवा, बहिया गामस्स वा जावरायहाणिए वा वणंसि वा वणदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयदुग्गंसि वा, भोच्चा आरुभइ, सोलसमेणं पारेइ, अभोच्चा आरुभइ, अट्ठारसमेणं पारेइ। जाए-जाए मोए आगच्छइ, ताए-ताए आईयव्वे। दिया आगच्छइ आईयव्वे,
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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