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[व्यवहारसूत्र देता है कि 'अमुक समय तक भिक्षु रहेंगे, उसके बाद वह स्थान भी तुम्हारा हो जायेगा।' ऐसी स्थिति में पूर्व शय्यादाता ही शय्यातर रहता है। शय्यातर के निर्णय का आशय यह है कि जो शय्यातर होगा उसी के घर का आहार आदि शय्यातरपिंड' कहलाएगा।
कभी पूर्व शय्यादाता भी कहें कि 'मेरी आज्ञा है' और नूतन स्वामी भी कहे कि 'मेरी भी आज्ञा है' तब दोनों को शय्यातर मानना चाहिए। यदि समझाने पर उनके समझ में आ जाय तो किसी एक की ही आज्ञा रखना उचित है। क्योंकि बृहत्कल्प उ.२ सू. १३ में अनेक स्वामियों वाले मकान में किसी एक स्वामी की आज्ञा लेने का विधान किया गया है। शय्यातर सम्बन्धी एवं शय्यातरपिंड सम्बन्धी विशेष जानकारी निशीथ उ. २ सू. ४६ के विवेचन में देखें।
सूत्र में गृहस्थ के घर के लिये उपाश्रय शब्द का प्रयोग किया गया है। इसका कारण यह है कि जहां भिक्षु ठहरा हुआ हो या जहां उसे ठहरना हो, उन दोनों ही मकानों को आगमकार उपाश्रय शब्द से कहते हैं। इसीलिए बृहत्कल्प उद्दे. २ सू. १-१० में पानी के घड़े, सुरा या सौवीर के घड़े और धान्य एवं खाद्यसामग्री रखे गृहस्थ के घर को भी उपाश्रय कहा गया है। संपूर्ण रात-दिन जहां अग्नि अर्थात् भट्टियां जलती हों या दीपक जलते हों, ऐसे गृहस्थ के आरम्भजन्य कारखाने आदि स्थान को भी उपाश्रय कहा गया है।
उसी पद्धति के कारण यहां भी गृहस्थ के घर में भिक्षु पहले से ठहरा हुआ होने से उसे उपाश्रय कहा है। वर्तमान में प्रचलित सामाजिक उपाश्रय में साधु ठहरा हुआ हो, उसे किसी के द्वारा बेचना या किराये पर देना सम्भव नहीं होता है।
अत: यहां उपाश्रय शब्द से गृहस्थ का मकान अर्थ समझना चाहिए। आज्ञा ग्रहण करने की विधि
२३. विहवधूया नायकुलवासिणीसा वि यावि ओग्गहं अणुन्नवेयव्वा, किमंग पुण पिया वा, भाया वा, पुत्ते वा, से वि या वि ओग्गहे ओगेण्हियव्वे।
२४. पहेवि ओग्गहं अणुनवेयव्वे।
२३. पिता के घर पर जीवन यापन करने वाली विधवा लड़की की भी आज्ञा ली जा सकती है तब पिता, भाई, पुत्र का तो कहना ही क्या अर्थात् उनकी भी आज्ञा ग्रहण की जा सकती है।
२४. यदि मार्ग में ठहरना हो तो उस स्थान की भी आज्ञा ग्रहण करनी चाहिए।
विवेचन-घर के किन-किन सदस्यों की आज्ञा ली जा सकती है। यह प्रथम सूत्र का प्रतिपाद्य विषय है और किसी भी स्थान पर आज्ञा लेकर ही बैठना चाहिए यह दूसरे सूत्र का प्रतिपाद्य विषय है।
प्रथम सूत्र में बताया गया है कि पिता, पुत्र, भाई की भी आज्ञा ली जा सकती है अर्थात् संयुक्त परिवार का कोई भी समझदार सदस्य हो, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, उनकी आज्ञा ली जा सकती है।