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छट्ठा उद्देशक
स्वजन-परिजन-गृह में गोचरी जाने का विधि-निषेध
१. भिक्खु य इच्छेज्जा नायविहिं एत्तए, नो से कप्पइ से थेरे अणापुच्छित्ता नायविहिं
कप्पड़ से थेरे आपुच्छित्ता नायविहिं एत्तए। थेरा य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ नायविहिं एत्तए। थेरा य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ नायविहिं एत्तए। जे तत्थ थेरेहिं अविइण्णे नायविहिं एइ, से संतरा छए वा परिहारे वा। नो से कप्पइ अप्पसुयस्स अप्यागमस्स एगाणियस्स नायविहिं एत्तए। कप्पइ से जे तत्थ बहुस्सुए बब्भागमे तेण सद्धिं नायविहिं एत्तए।
तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे, पच्छाउत्तेभिलिंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए।
तत्थ से पुव्वागमणेणं पुवाउत्तेभिलिंगसूवे, पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पइ से भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ चाउलोदणे पडिगाहित्तए।
तत्थ से पुव्वागमणेणं दो वि पुव्वाउत्ताई कप्पइ से दोवि पडिगाहित्तए। तत्थ से पुव्वागमणेणं दो वि पच्छाउत्ताइं नो से कप्पइ दो वि पडिगाहित्तए। जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते एवं से कप्पइ पडिगाहित्तए। जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पच्छाउत्ते नो से कप्पइ पडिगाहित्तए।
१. भिक्षु यदि स्वजनों के घर गोचरी जाना चाहे तो स्थविरों से पूछे बिना स्वजनों के घर जाना नहीं कल्पता है।
स्थविरों से पूछकर स्वजनों के घर जाना कल्पता है। स्थविर यदि आज्ञा दे तो स्वजनों के घर जाना कल्पता है। स्थविर यदि आज्ञा न दे तो स्वजनों के घर पर जाना नहीं कल्पता है।
स्थविरों की आज्ञा के बिना यदि स्वजनों के घर जाए तो वे दीक्षाछेद या तप रूप प्रायश्चित के पात्र होते हैं।
अल्पश्रुत और अल्पआगमज्ञ अकेले भिक्षु और अकेली भिक्षुणी को स्वजनों के घर जाना नहीं कल्पता है।