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________________ ३६४] [व्यवहारसूत्र यदि वह कहे कि किसी कारण से नहीं अपितु प्रमाद से विस्मृत हुआ है, तो उसे उक्त कारण से जीवनपर्यन्त आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है। ___ यदि वह कहे कि 'अमुक कारण से विस्मृत हुआ है-प्रमाद से नहीं। अब मैं आचारप्रकल्प पुनः कण्ठस्थ कर लूंगा'-ऐसा कहकर कण्ठस्थ कर ले तो उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना या धारण करना कल्पता है। यदि वह आचारप्रकल्प को पुनः कण्ठस्थ कर लेने को कहकर भी कण्ठस्थ न करे तो उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है। १६. नवदीक्षित, बाल एवं तरुण निर्ग्रन्थी को यदि आचारप्रकल्प-अध्ययन विस्मृत हो जाए तो उसे पूछना चाहिए कि ___ 'हे आर्ये! तुम किस कारण से आचारप्रकल्प-अध्ययन भूल गई हो? क्या किसी कारण से भूली हो या प्रमाद से?' यदि वह कहे कि-'किसी कारण से नहीं अपितु प्रमाद से विस्तृत हुआ है' तो उसे उक्त कारण से जीवनपर्यन्त प्रवर्तिनी या गणावच्छेदिनी पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है। यदि वह कहे कि-'अमुक कारण से विस्मृत हुआ है, प्रमाद से नहीं, मैं पुनः आचारप्रकल्प को कण्ठस्थ कर लूंगी'-ऐसा कहकर कण्ठस्थ कर ले तो उसे प्रवर्तिनी या गणावच्छेदिनी पद देना या धारण करना कल्पता है। ___ यदि वह आचारप्रकल्प को पुनः कण्ठस्थ कर लेने को कहकर भी कण्ठस्थ न करे तो उसे प्रवर्तिनी या गणावच्छेदिनी पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है। विवेचन-तीसरे उद्देशक के तीसरे सूत्र में तीन वर्ष की दीक्षापर्याय वाले श्रमण को 'आचारप्रकल्प' कण्ठस्थ धारण करने का कहा गया है और इन सूत्रों में प्रत्येक श्रमण-श्रमणी को आचारप्रकल्प कण्ठस्थ करना एवं उसे कण्ठस्थ रखना आवश्यक कहा गया है। साथ ही गच्छ के प्रमुख श्रमणों का यह कर्तव्य बताया गया है कि ये समय-समय पर यह जांच भी करते रहें कि किसी श्रमण को आचारप्रकल्प विस्मृत तो नहीं हो रहा है। यदि विस्मृत हुआ है तो उसके कारण की जानकारी करनी चाहिए। सूत्र में यह भी कहा गया है कि आचारप्रकल्प को भूलने वाला श्रमण या श्रमणी यदि नवदीक्षित है, बालवय या तरुणवय वाला है तो उसे सूत्रोक्त प्रायश्चित आता है। यह प्रायश्चित्त दो प्रकार का है, यथा (१) सकारण भूलने पर पुनः कण्ठस्थ करने तक वह किसी भी पदवी को धारण नहीं कर सकता तथा संघाड़ाप्रमुख बन कर विचरण भी नहीं कर सकता। (२) प्रमादवश भूल जाय तो वह जीवनपर्यन्त किसी पदवी को धारण नहीं कर सकता तथा संघाड़ाप्रमुख बन कर विचरण भी नहीं कर सकता। 'आचारप्रकल्प' से यहां आचारांग और निशीथसूत्र का निर्देश किया गया है। इस सम्बन्धी
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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