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पांचवां उद्देशक]
[३६३ प्रवर्तिनी पद पर किसी साध्वी को नियुक्त किया जा सकता है, किन्तु सामान्य विधान की अपेक्षा सूत्रानुसार साध्वियां या प्रवर्तिनी आदि भी अन्य योग्य साध्वी को प्रवर्तिनी आदि पद पर नियुक्त कर सकती हैं। यह इन सूत्रों से स्पष्ट होता है।
अन्य विवेचन चौथे उद्देशक के सूत्र १३-१४ के समान समझ लेना चाहिए। आचारप्रकल्प-विस्मृत को पद देने का विधि-निषेध
१५. निग्गंथस्सणं नव-डहर-तरुणस्स आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भढे सिया, से य पुच्छियव्वे
____ 'केण ते कारणेण अज्जो! आयारपकप्पे नाम-अज्झयणे परिब्भट्ठे ? किं आबाहेणं उदाहु पमाएणं?'
से यवएज्जा-'नोआबाहेणं, पमाएणं,' जावज्जीवंतस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।।
से यवएज्जा-'आबाहेणं, नोपमाएणं, से य संठवेस्सामित्ति'संठवेज्जा एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
से य 'संठवेस्सामि' त्ति नो संठवेज्जा, एवं से नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
१६. निग्गंथीए णं नव-डहर-तरुणाए आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भढे सिया, सा य पुच्छियव्वा
'केण भे कारणेणं अज्जे! आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भट्ठे ? किं आबाहेणं, उदाहु पमाएणं?'
सा या वएज्जा 'नो आबाहेणं, पमाएणं', जावज्जीवं तीसे तप्पत्तियं नो कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइणित्तं वा उद्दिसित्तए वा, धारेत्तए वा।
सा य वएज्जा-'आबाहेणं, नो पमाएणं सा य संठवेस्सामि त्तिं' संठवेज्जा एवं से कप्पइ पवत्तिणित्तिं वा गणावच्छेइणित्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
साय'संठवेस्सामि'त्तिनो संठवेज्जा, एवं से नो कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइणित्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
१५. नवदीक्षित, बाल एवं तरुण निर्ग्रन्थ के यदि आचारप्रकल्प (आचारांग-निशीथसूत्र) का अध्ययन विमृत हो जाए तो उसे पूछा जाए कि
"हे आर्य! तुम किस कारण से आचारप्रकल्प-अध्ययन को भूल गए हो, क्या किसी कारण से भूले हो या प्रमाद से?'