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पांचवां उद्देशक]
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यदि रोगादि का कारण हो तो ठहरना कल्पता है।
रोगादि के समाप्त होने पर यदि कोई कहे कि-'हे आर्य! एक या दो रात और ठहरो, 'तो उसे एक या दो रात और ठहरना कल्पता है। किन्तु एक या दो रात से अधिक ठहरना नहीं कल्पता है। जो साध्वी एक या दो रात से अधिक ठहरती है, वह मर्यादा-उल्लंघन के कारण दीक्षाछेद या तप रूप प्रायश्चित की पात्र होती है।
विवेचन-चौथे उद्देशक के ग्यारहवें बारहवें सूत्र में अग्रणी साधु के कालधर्म-प्राप्त हो जाने का वर्णन है और यहां अग्रणी साध्वी के कालधर्म-प्राप्त हो जाने का वर्णन है। अन्य साध्वी को अग्रणी बनने या बनाने का अथवा विहार करने का विवेचन चौथे उद्देशक के समान समझना चाहिए।
सूत्र में 'तीसे य अप्पणो कप्पाए' और 'वसाहि अज्जे' आदि एकवचन के प्रयोग प्रमुख साध्वी को लक्ष्य करके किये गये हैं और प्रमुख बनने या बनाने का वर्णन होने के कारण अनेक साध्वियों का होना भी सूत्र से ही स्पष्ट हो जाता है। प्रवर्तिनी के द्वारा पद देने का निर्देश
१३. पवत्तिणी य गिलायमाणी अन्नयरं वएज्जा-'मए णं अज्जे! कालगयाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा।'
सा य समुक्कसिणारिहा समुक्कसियव्वा, सा य समुक्कसिणारिहा नो समुक्कसियव्वा। अस्थि य इत्थ अण्णा काइ समुक्कसिणारिहा सा समुक्कसियव्वा। नत्थि य इत्थ अण्णा काइ समुक्कसिणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा। ताए च णं समुक्किट्ठाए परा वएज्जा
'दुस्समुक्किटुं ते अज्जे। निक्खिवाहि' ताए णं निक्खिवमाणाए नत्थि केइ छए वा परिहारे वा।
जाओ साहम्मिणीओ अहाकप्पंनो उट्ठाए विहरंति सव्वासिं तासिंतप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।
१४. पवत्तिणी य ओहायमाणी अन्नयरं वएज्जा'मए णं अज्जे! ओहावियाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा।' सा य समुक्कसिणारिहा समुक्कसियव्वा, सा य नो समुक्कसिणारिहा नो समुक्कसियव्वा। अस्थि य इत्थ अण्णा काइ समुक्कसिणारिहा सा समुक्कसियव्वा। नत्थि य इत्थ अण्णा काइ समुक्कसिणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा। ताए च णं समुक्किट्ठाए परा वएज्जा-'दुस्समुक्किटं ते अज्जे! निक्खिवाहि।' ताए णं निक्खिवमाणाए नत्थि केइ छए वा परिहारे वा।