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पांचवां उद्देशक]
६. वर्षावास में प्रवर्तिनी को अन्य तीन साध्वियों के साथ रहना कल्पता है। ७. वर्षावास में गणावच्छेदिनी को अन्य तीन साध्वियों के साथ रहना नहीं कल्पता है। ८. वर्षावास में गणावच्छेदिनी को अन्य चार साध्वियों के साथ रहना कल्पता है।
९. हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में अनेक प्रवर्तिनियों को ग्राम यावत् राजधानी में अपनी-अपनी निश्रा में दो-दो साध्वियों को साथ लेकर और अनेक गणावच्छेदिनियों को, तीन तीन अन्य साध्वियों को साथ लेकर विहार करना कल्पता है।
१०. वर्षावास में अनेक प्रवर्तिनियों को यावत् राजधानी में अपनी-अपनी निश्रा में तीन-तीन अन्य साध्वियों को साथ लेकर और अनेक गणावच्छेदिनियों को चार-चार अन्य साध्वियों को साथ लेकर रहना कल्पता है।
विवेचन-चौथे उद्देशक में प्रारम्भ के दस सूत्रों में आचार्य, उपाध्याय, गणावच्छेदक के विचरण में एवं चातुर्मास में साथ रहने वाले साधुओं की संख्या का उल्लेख किया गया है और यहां प्रवर्तिनी और गणावच्छेदिका के साथ रहने वाली साध्वियों की संख्या का विधान है।
बृहत्कल्प उद्दे. ५ में साध्वी को अकेली रहने का निषेध है और यहां प्रवर्तिनी को दो के साथ विचरने का निषेध है। अतः प्रवर्तिनी एक साध्वी को साथ में रखकर न विचरे, दो साध्वियों को साथ लेकर विचरे और तीन साध्वियों को साथ में रखकर चातुर्मास करे।
गणावच्छेदिनी प्रवर्तिनी की प्रमुख सहायिका होती है। इसका कार्यक्षेत्र गणावच्छेदक के समान विशाल होता है और यह प्रवर्तिनी की आज्ञा से साध्वियों की व्यवस्था, सेवा प्रायश्चित्त आदि सभी कार्यों की देख-रेख करती है। अतः गणावच्छेदिनी अन्य तीन साध्वियों को साथ लेकर विचरे और चार अन्य साध्वियों को साथ में रखकर चातुर्मास करे।
बृहत्कल्प उद्दे. ५ के विधान से और इन सूत्रों के वर्णन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अकेली साध्वी विचरण न करे किन्तु दो साध्वियां साथ में विचरण कर सकती हैं या चातुर्मास कर सकती हैं। क्योंकि आगम के किसी भी विधान में उनके लिए दो से विचरने को निषेध नहीं है। किन्तु साम्प्रदायिक समाचारियों के विधानानुसार दो सध्वियों का विचरण एवं चातुर्मास करना निषिद्ध माना जाता है, साथ ही सेवा आदि के निमित्त प्रवर्तिनी आदि की आज्ञा से दो साध्वियों को जाना-आना आगम-सम्मत भी माना जाता है। अन्य आवश्यक विवेचन चौथे उद्देशक के दस सूत्रों के समान समझ लेना चाहिए। अग्रणी साध्वी के काल करने पर साध्वी का कर्तव्य
११. गामाणुगामं दूइज्जमाणी णिग्गंथी य जं पुरओ काउं विहरइ, सा य आहच्च वीसुंभेज्जा अस्थि य इत्थ काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा सा उवसंपज्जियत्वा।
नत्थि य इत्थकाइ अण्णा उवसंपजणारिहा तीसे य अप्पणो कप्पाए असमत्ते एवं से कप्पइ एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अण्णाओ साहम्मिणीओ विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए।