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चौथा उद्देशक]
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६. वर्षाकाल में आचार्य या उपाध्याय को अन्य दो साधुओं के साथ रहना कल्पता है। ७. वर्षाकाल में गणावच्छेदक को दो साधुओं के साथ रहना नहीं कल्पता है। ८. वर्षाकाल में गणावच्छेदक को अन्य तीन साधुओं के साथ रहना कल्पता है।
९. हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में अनेक आचार्यों या उपाध्यायों को ग्राम यावत् राजधानी में अपनी-अपनी नेश्राय में एक-एक साधु को और अनेक गणावच्छेदकों को दो-दो साधुओं को रखकर विहार करना कल्पता है।
१०. वर्षाऋतु में अनेक आचार्यों या उपाध्यायों को ग्राम यावत् राजधानी में अपनी-अपनी नेश्राय में दो-दो साधुओं को और अनेक गणावच्छेदकों को तीन-तीन साधुओं को रखकर रहना कल्पता है।
विवेचन-इन सूत्रों में आचार्य, उपाध्याय एवं गणावच्छेदक के विचरण एवं चातुर्मासनिवास सम्बन्धी विधान किया गया है। प्रवर्तक, स्थविर आदि अन्य पदवीधर या सामान्य भिक्षुओं के लिये यहां विधान नहीं किया गया है। अन्य आगमों में इनके लिए ऐसा कोई विधान नहीं है। केवल अव्यक्त या अपरिपक्व भिक्षु को स्वतन्त्र विचरण करने का निषेध किया गया है एवं उसके स्वतन्त्र विचरण का दुष्परिणाम बताकर गुरु के सान्निध्य में विचरण करने का विधान आचा. श्रु. १ अ. ५ उ. ४ तथा सूय. श्रु. १ अ. १४ गा. ३-४ में किया गया है।
व्यक्त, परिपक्व एवं गीतार्थ भिक्षु के लिए कोई एकांत नियम आगम में नहीं है, अपितु अनेक प्रकार के अभिग्रह, प्रतिमाएं, जिनकल्प, संभोग-प्रत्याख्यान, सहाय-प्रत्याख्यान आदि तथा परिस्थितिवश संयमसमाधि या चित्तसमाधि के लिए एकलविहार का विधान किया गया है एवं भिक्षु के द्वितीय मनोरथ में भी निवृत्त होकर अकेले विचरण करने की इच्छा रखने का विधान है।
यहाँ तथा अन्यत्र आचार्य-उपाध्याय इन दो पदों का जो एक साथ क़थन किया गया है, इसका तात्पर्य यह है कि ये दोनों गच्छ में बाह्य-आभ्यन्तर ऋद्धिसम्पन्न होते हैं तथा इन दोनों पदवीधरों का प्रत्येक गच्छ में होना नितान्त आवश्यक भी है, ऐसा आगमविधान है। अर्थात् इन दो के बिना किसी गच्छ का या साधुसमुदाय का विचरण करना आगमानुसार उचित नहीं है।
विशाल गच्छों में गणावच्छेदक पद भी आवश्यक होता है, किन्तु आचार्य-उपाध्याय के समान प्रत्येक गच्छ में अनिवार्य नहीं है। अत: यहां उनके लिए विधान करने वाले सूत्र अलग कहे हैं।
इन सूत्रों के विधानानुसार ये तीनों पदवीधर कभी भी अकेले नहीं विचर सकते और चातुर्मास भी नहीं कर सकते, किन्तु कम से कम एक या अनेक साधुओं को साथ रखना इन्हें आवश्यक होता है। साथ रखे जाने वाले उन साधुओं की मर्यादा इस प्रकार है
आचार्य-उपाध्याय हेमन्त ग्रीष्म ऋतु में कम से कम एक साधु को साथ रखते हुए अर्थात् दो ठाणा से विचरण कर सकते हैं और अन्य दो साधु को साथ रखकर कुल तीन ठाणा से चातुर्मास कर