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[व्यवहारसूत्र मुसावाई, असुई, पावजीवी, जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
२८. बहवे आयरिय-उवज्झाया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहु-आगाढा-गाढेसुकारणेसु माई मुसावाई, असुई, पावजीवी जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
२९. बहवेभिक्खुणो बहवेगणावच्छेइया बहवे आयरिय-उवज्झाया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहु-आगाढा-गाढेसुकारणेसुमाई मुसावाई, असुई, पावजीवी जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
२३. बहुश्रुत, बहुआगमज्ञ भिक्षु अनेक प्रगाढ कारणों के होने पर यदि अनेक बार मायापूर्वक मृषा बोले या अपवित्र पापाचरणों से जीवन व्यतीत करे तो उसे उक्त कारणों से यावज्जीवन आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है।
२४. बहुश्रुत, बहुआगमज्ञ गणावच्छेदक अनेक प्रगाढ कारणों के होने पर यदि अनेक बार मायापूर्वक मृषा बोले या अपवित्र पापाचरणों से जीवन व्यतीत करे तो उसे उक्त कारणों से यावज्जीवन आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है।
२५. बहुश्रुत, बहुआगमज्ञ आचार्य या उपाध्याय अनेक प्रगाढ कारणों के होने पर यदि अनेक बार मायापूर्वक मृषा बोले या अपवित्र पापाचरणों से जीवन व्यतीत करे तो उसे उक्त कारणों से यावज्जीवन आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है।
२६. बहुश्रुत, बहुआगमज्ञ अनेक भिक्षु अनेक प्रगाढ कारणों के होने पर यदि अनेक बार मायापूर्वक मृषा बोलें या अपवित्र पापाचरणों से जीवन व्यतीत करें तो उन्हें उक्त कारणों से यावज्जीवन आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है।
____२७. बहुश्रुत, बहुआगमज्ञ अनेक गणावच्छेदक अनेक प्रगाढ कारणों के होने पर भी यदि अनेक बार मायापूर्वक मृषा बोलें या अपवित्र पापाचरणों से जीवन व्यतीत करें तो उन्हें उक्त कारणों से यावज्जीवन आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है।
२८. बहुश्रुत, बहुआगमज्ञ अनेक आचार्य उपाध्याय अनेक प्रगाढ कारणों के होने पर यदि अनेक बार मायापूर्वक मृषा बोलें या अपवित्र पापाचरणों से जीवन व्यतीत करें तो उन्हें उक्त कारणों से यावज्जीवन आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है।
२९. बहुश्रुत, बहुआगमज्ञ अनेक भिक्षु, अनेक गणावच्छेदक या अनेक आचार्य उपाध्याय अनेक प्रगाढ कारणों के होने पर यदि अनेक बार मायापूर्वक मृषा बोलें या अपवित्र पापाचरणों से जीवन व्यतीत करें तो उन्हें उक्त कारणों से यावज्जीवन आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है।