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[व्यवहारसूत्र में निरभिमान और क्लेशरहित होना सभी विशाल गच्छ वाले सोच लें तो नमस्कार मंत्र के दो पदों का होना ही निरर्थक सिद्ध होगा। जिससे पद-नियुक्ति सम्बन्धी सारे आगमविधानों का भी कोई महत्त्व नहीं रहेगा।
इसलिये अपने विचारों का या परम्परा का आग्रह न रखते हुए सरलतापूर्वक आगमविधानों के अनुसार ही प्रवृत्ति करना चाहिए। सारांश
(१) प्रत्येक नव डहर तरुण साधु को दो-और साध्वी को तीन पदवीधरयुक्त गच्छ में ही
रहना चाहिए। (२) इन पदवीधरों से रहित गच्छ में नहीं रहना चाहिए। (३) सूत्रोक्त वय के पूर्व एकलविहार या गच्छत्याग का स्वतन्त्र विचरण भी नहीं करना
चाहिए। (४) कोई परिस्थिति-विशेष हो तो अन्य आचार्य एवं उपाध्याय से युक्त गच्छ की निश्रा
लेकर विचरण करना चाहिए। (५) गच्छप्रमुखों को चाहिए कि वे अपने गच्छ को २ या ३ पद से कभी भी रिक्त न रखें। अब्रह्मसेवी को पद देने के विधि-निषेध
१३. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म मेहुणधम्म पडिसेवेज्जा, तिणि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।।
तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स, उवसंतस्स, उवरयस्स, पडिविरयस्स, निव्वागारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
१४. गणावच्छेइए य गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता मेहुणधम्म पडिसेवेज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
१५. गणावच्छेइए य गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता मेहुणधम्म पडिसेवेज्जा, तिण्णि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स, उवरयस्स, पडिविरयस्स, निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
१६.आयरिय-उवज्झाए य आयरिय-उवज्झायत्तं अनिक्खिवित्ता मेहुणधम्म पडिसेवेज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियंनो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।