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________________ ३१६] [व्यवहारसूत्र (२) दशवें उद्देशक में सर्वप्रथम आचारप्रकल्प' नामक अध्ययन की वाचना देने का विधान है। (३) पांचवें उद्देशक में 'आचारप्रकल्प अध्ययन' को भूल जाने वाले तरुण साधु-साध्वियों को प्रायश्चित्त देने का विधान है। इस प्रकार इस व्यवहारसूत्र में कुल सोलह बार 'आचारप्रकल्प' या 'आचारप्रकल्प-अध्ययन' का कथन है, यथाउद्देशक सूत्र ३,१० में एक-एक बार, - १७ में एक बार, १० २१,२२,२३ में एक-एक बार १५, १६, १८ में दो-दो बार १७, १८ में दो-दो बार नंदीसूत्र में कालिक उत्कालिक सूत्रों की सूची में ७१ आगमों के नाम दिये गये हैं। उनमें 'आचारप्रकल्प' या 'आचारप्रकल्प-अध्ययन' नाम का कोई भी सूत्र नहीं कहा गया है। अतः यह समझना एवं विचारना आवश्यक हो जाता है कि यह आचारप्रकल्प' किस सूत्र के लिये निर्दिष्ट है और कालपरिवर्तन से इसका नाम परिवर्तन किस प्रकार हुआ है। इस विषय में व्याख्याकार पूर्वाचार्यों के मंतव्य इस प्रकार उल्लिखित मिलते हैं (१) पंचविहे आयारप्पकप्पे पण्णत्ते, तं जहा–१. मासिए उग्घाइए, २. मासिए अणुग्घाइए, ३. चाउमासिए उग्घाइए, ४. चाउमासिए अणुग्घाइए ५. आरोवणा। टीका-आचारस्य प्रथमांगस्य पदविभागसमाचारीलक्षणप्रकृष्टकल्पाभिधायकत्वात् प्रकल्पः आचारप्रकल्पः निशीथाध्ययनम्। स च पंचविधः, पंचविधप्रायश्चित्ताभिधायकत्वात्। -ठाणांग. अ.५ (२) आचारः प्रथमांगः, तस्य प्रकल्पो अध्ययनविशेषो, निशीथम् इति अपराभिधानस्य.....। _ -समवायांग. २८ (३) अष्टाविंशतिविधः आचारप्रकल्पः निशीथाध्ययनम् आचारांगम् इत्यर्थः। स च एवं-(१) सत्थपरिण्णा जाव (२५) विमुत्ती, (२६) उग्घाइ, (२७) अणुग्याइ (२८) आरोवणा तिविहमो निसीहं तु, इति अट्ठावीसविहो आयारप्पकप्पनामो त्ति। -राजेन्द्र कोश भा. २, पृ. ३४९, 'आयारपकप्प' शब्द। -प्रश्नव्याकरण सूत्र अ. १०. (४) आचारः आचारांगम् प्रकल्पो-निशीथाध्ययनम्, तस्यैव पंचमचूला। आचारेण सहितः प्रकल्पः आचारप्रकल्प, पंचविंशति अध्ययनात्मकत्वात् पंचविंशतिविधः आचारः, १. उद्घातिमं, २. अनुद्घातिमं ३. आरोवणा इति त्रिधा प्रकल्पोमीलने अष्टाविंशतिविधः।। -अभि. रा. को. भाग २ पृ. ३५०, 'आयारपकप्प' शब्द यहां समवायांगसूत्र एवं प्रश्नव्याकरणसूत्र के मूल पाठ में अट्ठाईस प्रकार के आचार
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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