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________________ तीसरा उद्देशक ] [ ३१५ ७. अक्षत - आचार - आधाकर्म आदि दोषों से रहित शुद्ध आहार ग्रहण करने वाला एवं परिपूर्ण आचार का पालन करने वाला। ८. अभिन्नाचार - किसी प्रकार के अतिचारों का सेवन न करके पांचों आचारों का परिपूर्ण पालन करने वाला । ९. अशबलाचार - विनय, व्यवहार, भाषा, गोचरी आदि में दोष न लगाने वाला अथवा शबल दोषों से रहित आचरण वाला । १०. असंक्लिष्ट - आचार - इहलोक - परलोक सम्बन्धी सुखों की कामना न करने वाला अथवा क्रोधादि का त्याग करने वाला संक्लिष्ट परिणाम रहित भिक्षु । 4 'क्षत-आचार' आदि शब्दों का अर्थ इससे विपरीत समझ लेना चाहिए, यथा १. आधाकर्मादि दोषों का सेवन करने वाला । २. अतिचारों का सेवन कर पांच आचार या पांच महाव्रत में दोष लगाने वाला । ३. विनय, भाषा आदि का विवेक नहीं रखने वाला, शबल दोषों का सेवन करने वाला । ४. प्रशंसा, प्रतिष्ठा, आदर और भौतिक सुखों की चाहना करने वाला अथवा क्रोधादि से संक्लिष्ट परिणाम रखने वाला । बहुश्रुत- बहुआगमज्ञ - अनेक सूत्रों एवं उनके अर्थों को जानने वाला ' बहुश्रुत या बहुआगमज्ञ' कहा जाता है। आगमों में इन शब्दों का भिन्न-भिन्न अपेक्षा से प्रयोग है । यथा १. गम्भीरता विचक्षणता एवं बुद्धिमत्ता आदि गुणों से युक्त । २. जिनमत की चर्चा - वार्ता में निपुण या मुख्य सिद्धान्तों का ज्ञाता । ३. अनेक सूत्रों का अभ्यासी । ४. छेदसूत्रों में पारंगत । ५. आचार एवं प्रायश्चित्त विधानों में कुशल । ६. जघन्य, मध्यम या उत्कृष्ट बहुश्रुत | (१) जघन्यबहुश्रुत - आचारांग एवं निशीथसूत्र को अर्थ सहित कण्ठस्थ करने वाला। (२) मध्यमबहुश्रुत - आचारांग, सूत्रकृतांग और चार छेदसूत्रों को अर्थ सहित कण्ठस्थ धारण करने वाला। (३) उत्कृष्टबहुश्रुत – दृष्टिवाद को धारण करने वाला अर्थात् नवपूर्वी से १४ पूर्वी तक । सभी बहुश्रुत कहे गये हैं । जो अल्पबुद्धि, अत्यधिक भद्र, अल्प अनुभवी एवं अल्पआगमअभ्यासी होता है, वह 'अबहुश्रुत अबहुआगमज्ञ' कहा जाता है तथा कम से कम आचारांग, निशीथ, आवश्यक, दशवैकालिक और उत्तराध्ययन सूत्र को अर्थ सहित अध्ययन करके उन्हें कण्ठस्थ धारण नहीं करने वाला 'अबहुश्रुत अबहु आगमज्ञ' कहा जाता है। आचारप्रकल्प – (१) प्रस्तुत तीसरे सूत्र में 'आचारप्रकल्पधारी' होने का विधान है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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