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दूसरा उद्देशक ]
पुनः गण में आने के कारण
१. उसके साथ भेजे गए साधुओं के समझाने से ।
२. ग्रामादि के किसी प्रमुख व्यक्ति के समझाने से ।
३. पारिवारिक लोगों के समझाने से ।
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४. चिन्तन-मनन करते-करते या वैराग्यप्रद आगमसूत्रों के स्मरण होने से ।
५. कषाय एवं कलह के उपशांत हो जाने से ।
६. विषयेच्छा से जाने वाले को स्व- स्त्री के कालधर्म प्राप्त होने की जानकारी मिल जाने से।
७. घर का सम्पूर्ण धन विनष्ट होने की जानकारी होने से ।
८. परिवार के लोग घर में नहीं रखेंगे, ऐसा ज्ञात होने से ।
९. धर्म की अश्रद्धा हो जाने पर संयम त्यागने वाले को फिर कभी किसी दृश्य के देखने पर पुनः धर्म में श्रद्धा हो जाने से ।
१०. मार्ग में ही अत्यन्त बीमार हो जाने से अथवा कष्ट या उपसर्ग आ जाने से यह विचार आए कि संयम त्यागने के संकल्प से पुण्य नष्ट होकर पाप का उदय हो रहा है, अतः संयमपालन करना ही श्रेयस्कर है।
११. कोई मित्र देव के प्रतिबोध देने से ।
भाष्यकार ने यह भी स्पष्ट कहा है कि भिक्षु यदि संयमत्याग के संकल्प की जानकारी गच्छप्रमुखों को देवे तो गच्छप्रमुख उसे अनेक उपायों से स्थिर करे। तदुपरांत भी वह जाना चाहे तो उसे पहुँचाने के लिए १ - २ कुशल भिक्षुओं को साथ भेजे, जो उसे १ - २ रात्रि तक या गंतव्यस्थान तक पहुँचाने जाएँ। वे मार्ग में भी उसे यथोचित सलाह देवें और अन्त में उसके गंतव्यस्थान तक भी साथ जाएँ। इस बीच कभी भी उसके विचार पुनः संयम में स्थिर हो जाएँ तो उसे साथ लाकर गच्छप्रमुख के सुपुर्द कर दें। उसके पुनः न आने पर भी साथ में भेजे साधु गच्छप्रमुख को मार्ग में हुई बातों की पूरी जानकारी दें।
साथ भेजे गए भिक्षुओं के लौटने के बाद विचारों में परिवर्तन होने पर वह पीछे से अकेला आ जाए तब सूत्रोक्त विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।
संयम त्यागने के संकल्प वाला भिक्षु सूचना देकर भी जा सकता है और सूचना दिये विना भी जा सकता है। दोनों प्रकार से जाने वाला भिक्षु संयम त्याग किये विना पुनः आ सकता है और संयम त्याग कर भी पुनः आ सकता है। प्रस्तुत सूत्र में संयम का त्याग किये विना आने वाले भिक्षु के सम्बन्ध में सारा विधान किया गया है।
एकपक्षीय भिक्षु को पद देने का विधान
२५. एगपक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पड़ आयरिय-उवज्झायाणं इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा, धारेत्तए वा, जहा वा तस्स गणस्स पत्तियं सिया ।