________________
२८२]
[व्यवहारसूत्र
आलोचना करने का क्रम
३३. (१) भिक्खू य अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता इच्छेज्जा आलोएत्तए, जत्थेव अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा तस्संतिए आलोएज्जा जाव अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा।
___(२) नो चेव णं अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा, जत्थेव संभोइयं साहम्मियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम, तस्संतिए आलोएज्जा जाव अहारिहं तवोकम्मं पायच्छितं पडिवज्जेज्जा।
(३) नो चेव णं संभोइयं साहम्मियं बहुस्सुयं बब्भागमं पासेज्जा, जत्थेव अन्नसंभोइयं साहम्मियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम, तस्संतिए आलोएज्जा जाव अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवजेज्जा।
(४) नो चेवणं अन्नसंभोइयं साहम्मियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम, जत्थेव सारूवियं पासेज्जा बहुस्सुयंबब्भागम, तस्संतिए आलोएज्जा जाव अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा।
(५)नो चेवणं सारूवियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम, जत्थेव समणोवासगंपच्छाकडं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम, तस्संतिए आलोएज्जा जाव अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा।
(६) नो चेव णं समणोवासगं पच्छाकडं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम, जत्थेव सम्म भावियाइं चेइयाई पासेज्जा, तस्संतिए आलोएन्जा जाव अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा।
(७) नो चेवणं सम्मं भावियाइं चेइयाइं पासेज्जा, बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा पाईणाभिमुहे वा उदीणाभिमुहे वा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वएज्जा
_ 'एवइया मे अवराहा, एवइक्खुत्तो अहं अवरद्धो' अरिहंताणं सिद्धाणं अन्तिए आलोएज्जा जाव अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा।
(१) भिक्षु किसी अकृत्यस्थान का प्रतिसेवन करके उसकी आलोचना करना चाहे तो जहां पर अपने आचार्य या उपाध्याय को देखे, वहां उनके समीप आलोचना करे यावत् यथायोग्य प्रायश्चित्त रूप तपःकर्म स्वीकार करे।
(२) यदि अपने आचार्य या उपाध्याय न मिलें तो जहां पर साम्भोगिक (एक मांडलिक आहार वाले) साधर्मिक साधु मिलें जो कि बहुश्रुत एवं बहुआगमज्ञ हों, उनके समीप आलोचना करे यावत् यथायोग्य प्रायश्चित्त रूप तपःकर्म स्वीकार करे।
(३) यदि साम्भोगिक साधर्मिक बहुश्रुत बहुआगमज्ञ साधु न मिले तो जहां पर अन्य साम्भोगिक साधर्मिक साधु मिले-'जो बहुश्रुत हो और बहुआगमज्ञ हो', वहां उसके समीप आलोचना करे यावत् यथायोग्य प्रायश्चित्त रूप तपःकर्म स्वीकार करे।