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[बृहत्कल्पसूत्र जैसे कड़ाही में मात्रा से कम दूध आदि ओंटाया या रांधा जाता है तो वह उसके भीतर ही उबलता पकता रहता है, बाहर नहीं आता किन्तु जब कड़ाही में भर-पूर दूध या अन्य कोई पदार्थ भर कर ओंटाया या पकाया जाता है तब उसमें उबाल आकर कड़ाही से बाहर निकल जाता है और कभी तो वह चूल्हे की आग तक को बुझा देता है।
__इसी प्रकार मर्यादा से अधिक आहार करने से उद्गाल आ जाता है और कम आहार करने से उद्गाल नहीं आता है। ऐसा ही प्रायश्चित्तसूत्र निशीथ उ. १० में भी है। संसक्त आहार के खाने एवं परठने का विधान
११. निग्गंथस्स य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविद्वस्स अंतो पडिग्गहंसि पाणाणि वा, बीयाणि वा, रए वा परियावज्जेज्जा, तंच संचाएइ विगिंचित्तए वा विसोहित्तए वा, तं पुव्वामेव विगिंचिय विसोहिय, तओ संजयामेव भुंजेज्ज वा, पिएज्ज वा।
तंच नो संचाएइ विगिंचित्तए वा, विसोहित्तए वा, तं नो अप्पणो भुंजेज्जा, नो अन्नेसिं दावए, एगते बहुफासुए थंडिले पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिट्ठवेयव्वे सिया।
११. गृहस्थ के घर में आहार-पानी के लिए प्रविष्ट हुए साधु के पात्र में कोई प्राणी, बीज या सचित्त रज पड़ जाए और यदि उसे पृथक् किया जा सके, विशोधन किया जा सके तो उसे पहले पृथक् करे या विशोधन करे, उसके बाद यतनापूर्वक खावे या पीवे।
यदि उसे पृथक् करना या विशोधन करना सम्भव न हो तो उसका न स्वयं उपभोग करे और न दूसरों को दे, किन्तु एकांत और प्रासुक स्थंडिल-भूमि में प्रतिलेखन प्रमार्जन करके परठ दे।
विवेचन-गोचरी के लिए गए हुए साधु या साध्वी को सर्वप्रथम आहार देने वाले व्यक्ति के हाथ में लिए हुए अन्नपिंड का निरीक्षण करना चाहिए कि यह शुद्ध है या नहीं। जीवादि तो उसमें नहीं हैं? यदि शुद्ध एवं जीवरहित दिखे तो ग्रहण करे, अन्यथा नहीं। देख कर या शोध कर यतना से ग्रहण करते हुए उक्त अन्न-पिंड के पात्र में दिये जाने पर पुनः देखना चाहिए कि पात्र में अन्नपिंड देते समय कोई मक्खी आदि तो नहीं दब गई है, या ऊपर से आकर तो नहीं बैठ गई है, या अन्य कीड़ी आदि तो नहीं चढ़ गई है? यदि साधु या साध्वी इस प्रकार सावधानीपूर्वक निरीक्षण न करे तो लघुमास के प्रायश्चित्त का पात्र होता है।
___ कदाचित् गृहस्थ द्वारा आहार देते समय साधु का उपयोग अन्यत्र हो और गृहस्थ के घर से निकलते ही उसका ध्यान आहार की ओर जावे कि मैं पात्र में लेते समय जीवादि का निरीक्षण नहीं कर पाया हूं तो सात कदम जाए जितने समय के भीतर ही किसी स्थान पर खड़े होकर उसका निरीक्षण करना चाहिए। यदि उपाश्रय समीप हो तो वहां जाकर निरीक्षण करना चाहिए और निरीक्षण करने पर यदि त्रस प्राणी चलते-फिरते दीखे तो उन्हें यतना से एक-एक करके बाहर निकाल देना चाहिए। इसी प्रकार यदि आहार में मृत जीव दीखे या सचित्त बीजादि दीखे अथवा सचित्त-पत्रादि से मिश्रित आहार दीखे और उनका निकालना संभव हो तो विवेकपूर्वक निकाल देना चाहिए। यदि उनका निकालना संभव न हो तो उसे एकान्त निर्जीव भूमि पर परठ देना चाहिए।