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[बृहत्कल्पसूत्र साध्वियों के साथ अकारण आपवादिक व्यवहार करने पर लघुचौमासी और गीतार्थ की आज्ञा के विना करने पर गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।
अन्य साम्भोगिक समनोज्ञ भिक्षुओं के साथ भक्त-पान का व्यवहार करने से लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।
भाष्यकार ने यह भी कहा है कि लोक-व्यवहार या आपवादिक स्थिति में गीतार्थ की निश्रा से भी जो आवश्यक व्यवहार (अंजलिप्रग्रह आदि) पार्श्वस्थादि के साथ नहीं करता है, वह भी प्रायश्चित्त का भागी होता है एवं ऐसा करने से जिनशासन की अभक्ति और अपयश होता है।
पूर्व सूत्रात्रिक में अध्ययन करने के लिये अल्पकालीन उपसंपदा हेतु अन्य गच्छ में जाने का कथन है और इन सूत्रों में सदा के लिये एक मांडलिक आहार आदि सम्भोग स्वीकार करके अन्य गच्छ में रहने के लिये जाने का वर्णन है।।
आज्ञा प्राप्त करना और अन्य योग्य भिक्षु को पदवी देना यह पूर्व सूत्रों के समान ही इनमें भी आवश्यक है।
इन सूत्रों में आज्ञाप्राप्ति के बाद भी एक विकल्प अधिक रखा गया हैयथा-'जत्थुत्तरियं धम्म-विणयं लभेज्जा एवं से कप्पइ'।
सूत्र-पठित इस वाक्य से यह सूचित किया गया है कि जब कोई साधु यह देखे कि इस संघ में रहते हुए, एक मण्डली में खान-पान एवं अन्य कृतिकर्म करते हुए भाव-विशुद्धि के स्थान पर संक्लेश-वृद्धि हो रही है और इस कारण से मेरे ज्ञान दर्शन चारित्र आदि की समुचित साधना नहीं हो रही है, तब वह अपने को संक्लेश से बचाने के लिए तथा ज्ञान-चारित्रादि की वृद्धि के लिए अन्यगण में, जहां पर कि अधिक धर्मलाभ की सम्भावना हो, जाने की इच्छा करे तो वह जिसकी निश्रा में रह रहा है, उनकी अनुज्ञा लेकर जा सकता है।
किन्तु जिस गच्छ में जाने से वर्तमान अवस्था से संयम की हानि हो, वैसे गच्छ में जाने की जिनाज्ञा नहीं है एवं जाने पर-निशीथ उ. १६ में कथित प्रायश्चित्त आता है। अत: संयमधर्म की उन्नति हो वैसे गच्छ में जाने का ही संकल्प करना चाहिए। आचार्यादि को वाचना देने के लिये अन्यगण में जाने का विधि-निषेध
२६. भिक्खू य इच्छेज्जा अन्नं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए।
___कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए।
ते य से वियरेज्जा एवं से कप्पइ अन्नं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए। ते य से नो वियरेज्जा एवं से नो कप्पइ अन्नं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए। नो से कप्पइ तेसिं कारणं अदीवेत्ता अन्नं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए। कप्पइ से तेसिं कारणं दीवेत्ता अन्नं आयरिय-उवज्झायं उद्दिसावेत्तए।