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[ बृहत्कल्पसूत्र
आचा. श्रु.२, अ. २, उ. ३ में शय्या - संस्तारक लौटाने की विधि बताई है । उसका तात्पर्य यह है कि उनका अच्छी तरह ऊपर नीचे प्रतिलेखन कर लेना चाहिए। आवश्यक हो तो खंखेरना या धूप में आतापित करना चाहिए। इस प्रकार सर्वथा जीवरहित होने पर लौटाना चाहिए।
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पाट आदि उपयोग में लेने से मलीन हो जाएँ तो उन्हें धोकर एवं पौंछकर साफ करके देना चाहिए। यदि वे कुछ टूट-फूट जाएँ या खराब हो जाएँ तो उन्हें विवेकपूर्वक सूचना करते हुए लौटाना चाहिए ।
भाष्य में बताया गया है - जिस बांस की कंबिया आदि को बांधा हो अथवा बंधे हुए को खोला हो तो उन्हें पुनः पूर्व अवस्था में करके लौटाना चाहिए।
इन सभी विधानों का आशय यह है कि व्यवस्थित लौटाने से साधु-साध्वी की प्रतीति रहती है एवं शय्या - संस्तारक की सुलभता रहती है तथा तीसरे महाव्रत का शुद्ध रूप से पालन होता है। खोए हुए शय्या - संस्तारक के अन्वेषण करने का विधान
२७. इस खलु निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारिए वा सागारियसंतिए वा सेज्जासंथारए विप्पणसेज्जा, से य अणुगवेसियव्वे सिया ।
सेय अणुगवेसमाणे भेज्जा तस्सेव पडिदायव्वे सिया ।
'सेय अणुगवेसमाणे नो लभेज्जा, एवं से कप्पइ दोच्वंपि उग्गहं अणुण्णवेत्ता परिहारं परिहरित्तए ।
२७. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों का प्रातिहारिक या सागारिक शय्या-संस्तारक यदि गुम हो जाए तो उसका उन्हें अन्वेषण करना चाहिए ।
अन्वेषण करने पर यदि मिल जाए तो उसी को दे देना चाहिए।
अन्वेषण करने पर कदाचित् न मिले तो पुनः आज्ञा लेकर अन्य शय्या - संस्तारक ग्रहण करके उपयोग में लेना कल्पता है ।
विवेचन - नियुक्तिकार ने बताया है कि साधु गृहस्थ के घर से जो भी शय्या - संस्तारक आदि मांग कर लावे उसकी रक्षा के लिए सावधानी रखनी चाहिए और उपाश्रय को सूना नहीं छोड़ना चाहिए।. गोचरी आदि के लिए बाहर जाना हो तो किसी न किसी को उपाश्रय की रक्षा के लिए नियुक्त करके जाना चाहिए। यदि कायिकी बाधा के निवारणार्थ इधर-उधर जाने पर या पठन-पाठनादि में चित्त लगा रहने पर कोई चुराकर ले जाए, अथवा गृहस्थ के घर से लाते समय या वापस देते समय हाथ से छीनकर कोई भाग जाए या बाहर धूप में रखने पर कोई उठा ले जाए इत्यादि किसी भी कारण से शय्यासंस्तारक खो जाए तो साधु उसकी गवेषणा तत्काल करे ।
अन्वेषण करते हुए यदि ले जाने वाला मिल जावे तो उससे उसे देने के लिए कहे- 'हे भद्र ! यह मैं किसी गृहस्थ से मांग कर लाया हूँ, आप यदि ले आये हैं तो हमें वापस देवें ।' यदि उसके भाव नहीं देने के हों तो उसे धार्मिक वाक्य कहकर दे देने के लिए उत्साहित करे ।