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________________ १८८] [बृहत्कल्पसूत्र गृहस्थ के घर में मर्यादित धर्मकथा का विधान २३. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वाअंतरगिहंसि, इमाइं पंच महव्वयाइंसभावणाई आइक्खित्तए वा, विभावित्तए वा, किट्टित्तए वा, पवेइत्तए वा। ननत्थ एगनाएण वा जाव एगसिलोएण वा; से वि य ठिच्चा, नो चेवणं अठिच्चा। २३. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को गृहस्थ के घर में भावना सहित पांचों महाव्रतों का कथन, अर्थ-विस्तार या महाव्रताचरण के फल का कथन करना एवं विस्तृत विवेचन करना नहीं कल्पता है। किन्तु आवश्यक होने पर केवल एक उदाहरण यावत् एक श्लोक से कथन करना कल्पता है। वह भी खड़े रहकर किन्तु बैठकर नहीं। विवेचन-पूर्व सूत्र में किसी के द्वारा पूछे जाने पर वार्तालाप करने का विधि-निषेध किया गया है। प्रस्तुत सूत्र में महाव्रतों के कथन का विधि-निषेध किया गया है। साधु और साध्वियों को गृहस्थ के घर में पांचों महाव्रतों का उनकी भावनाओं के साथ आख्यान-मूल पाठ का उच्चारण, विभावन-अर्थ का प्रतिपादन, कीर्तन-लौकिक लाभों का वर्णन और प्रवेदन-स्वर्ग-मोक्षादि पारलौकिक फल को प्रकट करना नहीं कल्पता है। __ भाष्यकार ने इसका कारण बताते हुए कहा है कि यदि साधु महाव्रतों का विस्तार से उपदेश करने लग जाए और उसे सुनने वाली गर्भिणी स्त्री जब तक वहां बैठी रहती है तब तक गर्भस्थ जीव के आहार-पान के निरोध से यदि कुछ अनिष्ट हो जाए तो वह उपदेष्टा उनकी हिंसा का भागी होता है। ___ अथवा उसी समय कोई घर की स्त्री दीर्घशंका-निवारणार्थ चली जाए और उससे द्वेष रखने वाली उसकी सौत या अन्य विद्वेषिणी स्त्री उसके बच्चे को मार कर साधु या साध्वी के सम्मुख लाकर पटक दे और चिल्लाने लगे कि इस साधु ने इसको मार डाला है। ऐसे अवसर पर लोगों को साधु के विषय में प्राणघात करने की आशंका हो सकती है। इसी प्रकार कभी किसी के पूछने पर साधु ने कहा हो कि उसे गृहस्थ के घर पर उपदेश देना नहीं कल्पता है, पीछे किसी के यहां उपदेश दे तो मृषावाद का भी दोष लगता है। ___ साधु के उपदेश-काल में घर की दासी अवसर पाकर किसी आभूषणादि को चुरा ले जाए, पीछे साधु के चले जाने पर गृहस्वामी उस साधु पर चोरी का दोष लगा दे। किसी स्त्री का पति विदेश गया हो और वह उपदेश सुनने के छल से कुछ देर साधु को ठहरा करके मैथुन-सेवन की प्रार्थना करे और साधु विचलित हो जाए अथवा वह स्त्री अच्छे वस्त्र-पात्रादि देने का प्रलोभन देकर साधु को प्रलोभित करे, इत्यादि कारणों से साधु के महाव्रतों में ही दोष लगता है। __ अतः सूत्र में गृहस्थ के घर पर पांचों महाव्रतों के आख्यान, विभावनादि विस्तृत प्रवचन का निषेध किया है। यदि कभी कोई रुग्ण-जिज्ञासु महाव्रतों के स्वरूप आदि के विषय में पूछे तो उसे विवेकपूर्वक एक गाथा से या एक श्लोक से अर्थात् संक्षिप्त रूप में कथन करे, वह भी खड़े रहकर ही करना चाहिए बैठकर नहीं। क्योंकि गोचरी गया हुआ भिक्षु खड़ा तो रहता ही है। वहां बैठना ही अनेक शंकाओं का स्थान होता है। अत: बैठने का सर्वथा निषेध किया गया है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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