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[बृहत्कल्पसूत्र किन्तु अन्य सभी के सम्मिलित आहार में शय्यातर का आहार मिश्रित कर दिया गया हो और जिस हेतु से आहार सम्मिलित किया गया हो उन देवताओं का नैवेद्य निकाल दिया गया हो, ब्राह्मण आदि को जितना देना है उतना दे दिया गया हो, उसके बाद भिक्षु लेना चाहे तो ले सकता है। क्योंकि अब उस आहार में शय्यातर के आहार का अलग अस्तित्व भी नहीं है एवं उसका स्वामित्व भी नहीं रहा है अतः उस मिश्रित एवं परिशेष आहार में से भिक्षु को ग्रहण करने में शय्यातरपिण्डग्रहण का दोष नहीं लगता है। यह तीसरे सूत्र का आशय है।
____ विहार आदि किसी भी कारण से उक्त असंसृष्ट आहार को ग्रहण करने हेतु संसृष्ट करवाना भिक्षु को नहीं कल्पता है। यह चौथे सूत्र का आशय है।
___ उक्त असंसृष्ट आहार आदि को संसृष्ट करवाना संयम-मर्यादा से विपरीत है एवं लोगों को भी अप्रीतिकारक होता है। अतः ऐसा करने पर भिक्षु लौकिक व्यवहार एवं संयम-मर्यादा का उल्लंघन करने वाला होता है। इसलिए उसे प्रायश्चित्त आता है। यह पांचवें सूत्र का आशय है।
शय्यातर के असंसृष्ट आहार को या उसके घर की सीमा में रहे आहार को ग्रहण करने पर यदि वह भद्रप्रकृति वाला हो तो पुनः पुनः इस निमित्त से आहार देने का प्रयास कर सकता है। यदि वह तुच्छ प्रकृति वाला हो तो रुष्ट हो सकता है, जिससे वध-बंधन या शय्या देने का निषेध कर सकता है। घर की सीमा से बाहर रहे हुए संसृष्ट आहार में उक्त दोष की सम्भावना नहीं होती है। अतः ग्राह्य कहा गया है। शय्यातर के घर आये या भेजे गये आहार के ग्रहण का विधि-निषेध
१९. सागारियस्स आहडिया सागारिएण पडिग्गहिया, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए।
२०. सागारियस्स आहडिया सागारिएण अपडिग्गहिया, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए।
२१. सागारियस्स नीहडिया परेण अपडिग्गहिया, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। २२. सागारियस्स नीहडिया परेण पडिग्गहिया, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए।
१९. अन्य घर से आये हुए आहार को सागारिक ने अपने घर पर ग्रहण कर लिया है और वह उसमें से साधु को दे तो लेना नहीं कल्पता है।
२०. अन्य घर से आये हुए आहार को सागारिक ने अपने घर पर ग्रहण नहीं किया है और यदि आहार लाने वाला उस आहार में से साधु को दे तो लेना कल्पता है।
२१. सागारिक के घर से अन्य घर पर ले जाये गये आहार को उस गृहस्वामी ने यदि स्वीकार नहीं किया है तो उस आहार में से साधु को दे तो लेना नहीं कल्पता है।