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________________ १४२] [बृहत्कल्पसूत्र ५. इच्छाए परो संवसेज्जा, इच्छाए परो नो संवसेज्जा। ६. इच्छाए परो उवसमेजा, इच्छाए परो नो उवसमेज्जा। जो उवसमइ तस्स अस्थि आराहणा, जो न उवसमइ तस्स नत्थि आराहणा; तम्हा अप्पणा चेव उवसमियव्वं। प०-से किमाहु भंते! उ०-'उवसमसारं खु सामण्णं।' ३४. भिक्षु किसी के साथ कलह हो जाने पर उस कलह को उपशान्त करके स्वयं सर्वथा कलहरहित हो जाए। जिसके साथ कलह हुआ है १. वह भिक्षु इच्छा हो तो आदर करे, 'इच्छा न हो तो आदर न करे। २. वह इच्छा हो तो उसके सन्मान में उठे, इच्छा न हो तो न उठे। ३. वह इच्छा हो तो वन्दना करे, इच्छा न हो तो वन्दना न करे। ४. वह इच्छा हो तो उसके साथ भोजन करे, इच्छा न हो तो न करे। ५. वह इच्छा हो तो उसके साथ रहे, इच्छा न हो तो न रहे। ६. वह इच्छा हो तो उपशान्त हो, इच्छा न हो तो उपशान्त न हो। जो उपशान्त होता है उसके संयम की आराधना होती है। जो उपशान्त नहीं होता है उसके संयम की आराधना नहीं होती है। इसलिए अपने आपको तो उपशान्त कर ही लेना चाहिए। प्र०-भन्ते! ऐसा क्यों कहा? उ०-(हे शिष्य) उपशम ही श्रमण-जीवन का सार है। विवेचन-यद्यपि भिक्षु आत्मसाधना के लिए संयम स्वीकार कर प्रतिक्षण स्वाध्याय, ध्यान आदि संयम-क्रियाओं में अप्रमत्त भाव से विचरण करता है तथापि शरीर, आहार, शिष्य, गुरु, वस्त्र, पात्र, शय्या-संस्तारक आदि कई प्रमाद एवं कषाय के निमित्त संयमी जीवन में रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का स्वभाव, क्षयोपशम, विवेक भी भिन्न-भिन्न होता है। क्रोध मान आदि कषायों की उपशान्ति भी सभी की भिन्न-भिन्न होती है। परिग्रहत्यागी होते हुए भी द्रव्यों एवं क्षेत्रों के प्रति ममत्व के अभाव में (अममत्व भाव में) भिन्नता रहती है। विनय, सरलता, क्षमा, शान्ति आदि गुणों के विकास में सभी को एक समान सफलता नहीं मिल पाती है। अनुशासन करने में एवं अनुशासन पालने में भी सभी की शान्ति बराबर नहीं रहती है। भाषा-प्रयोग का विवेक भी प्रत्येक का भिन्न-भिन्न होता है। इत्यादि कारणों से साधना की अपूर्ण अवस्था में प्रमादवश उदयभाव से भिक्षुओं के आपस में कभी कषाय या क्लेश उत्पन्न हो सकता है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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